??◆ज़िंदगी◆??
कभी ख़ुशनुमा कभी उदास लगती है ज़िन्दगी।
हरपल एक नया इतिहास लगती है ज़िन्दगी।।
झाँक कर देखा जब भी इंसान की आँखों में।
लिए बैठे वर्षों की प्यास लगती है ज़िन्दगी।।
कल उड़ाकर ले गई मक़ानों की छतें आँधियाँ।
फूली-फूली-सी सबकी साँस लगती है ज़िन्दगी।।
शेर की खाल पहने सियार से सब डर गए।
दहशत में फँसी,उलझी दास लगती है ज़िन्दगी।।
तेरे चेहरे को देखकर में तमाम ग़म भूल गया।
क़सम से आज बड़ी बिंदास लगती है ज़िन्दगी।।
घृणा,द्वेष,वैमनस्य की आग में शहर झुलसा है।
हर तरफ़ मौत का आभास लगती है ज़िन्दगी।।
जिसको भी देखो वही भटकता है अनजान-सा।
कभी न ख़त्म हो वो तलास लगती है ज़िन्दगी।।
लक्ष्य न कोई सफ़र का ही पता है हमें यारा।
कटी पतंग-सा एक विश्वास लगती है ज़िन्दगी।।
आज मज़े में गुज़रे कल कौन देखे की सोच।
स्वार्थ का ये कोरा अहसास लगती है ज़िन्दगी।।
क्यों सिर पकड़कर बैठ गया”प्रीतम”आज तू।
क्या ग़म से घिरी बकवास लगती है ज़िन्ददगी।।
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राधेयश्याम….बंगालिया….प्रीतम….कृत