??अपना- अपना नज़रिया??
दिल दिया जिसको,हो गया रक़ीब।
वो राजदां था दिल के बहुत क़रीब।।
बिस्मिल किया दिल,क़समें-वादे तोड़।
अर्श से गिरा ज़मीं पर मेरा नशीब।।
कौन जाने किसी को आज़माए बिन।
अमीर भी होते हैं, दिल से ग़रीब।।
ख़ुश है दीवाना बन,चाँद का चकोर।
बेचारा न जाने,है कितना बदनशीब।।
आँखों में प्यार का समन्दर लिए हुए।
मिला था हमको भी बेवफ़ा अज़ीब।।
कर्मे-सिला है नेकी और रुसवाई,बंधु।
ख़ुदा खैर करे,भटके हैं जो अजीज।।
“प्रीतम”चाँद को देखे कोई दाग़ को।
अपना-अपना नज़रिया सबका साहिब!