” खुश होकर – मौसम ने , रंग बिखेरे हैं ” !!
तैरते सन्देश –
हवा में ,
पा ही गये !
मूक थे अनुबन्ध –
जुबां पे ,
आ ही गये !
सिलसिले –
समझोतों के ,
बहुतेरे हैं !!
प्यास अधरों पे –
जगी तो ,
बढ़ती गयी !
श्वास काबू में –
कहाँ है ,
थमती नहीं !
अनचाहे –
प्रश्नों के लगे ,
कई फेरे हैं !!
गात पुलकित –
मन उड़े ,
जैसे हवाओं में !
दिल की सारी –
बातें सुन ली ,
जैसे फिजाओं ने !
छा रहे –
आशा के बादल ,
हैं घनेरे !!
बृज व्यास