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11 Sep 2017 · 1 min read

” ————————————————— खुद से खा गये धोखा ” !!

आंखों में खुशियां छलके है , यादें बनी झरोखा !
यायावरी हुआ है मनवा , खुद से खा गए धोखा !!

जीवन के रंगों में डूबे , प्रीत लगी फागुनिया !
दिन लगते हैं उत्सव जैसे , हाथ लगा रंग चोखा !!

हुई बावरी आज चुनरिया , सिर से सरकी जाये !
देह संदली यों बल खाये , छूट ना जाये मौका !!

दिल की धड़कन गीत सुनाती , साँसों में सरगम है !
बल खाते कुन्तल लहराये , खुशबू को है रोका !!

डूबे हैं अनुराग में ऐसे , सुधबुध खोई खोई !
राहें भी बेचैन लगे हैं , किसने तुमको टोका !!

हंसी हमारी हुई परायी , बोल न जाये बोले !
पवन झकोरे सरसर करते , देते मीठा झोंका !!

समय सीढ़ियां चढ़ बैठा है , इंतज़ार गुपचुप है !
जगमग जगमग उम्मीदों ने , आसमान सिर तोका !!

बृज व्यास

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