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3 Aug 2017 · 1 min read

खानाबदोश

आसमान में उड़ते
परिंदों की तरह
इस जगह से उस जगह
आशाओं की उड़ान भरते हुए
अनगिनत ख्वाबों को
अपने आँखों में सजाए हुए
चलते रहते हैं हरदम,
न कोई दिशा न मंजिल
बस यूं ही गुजरते रहते हैं
अनजान शहर की गलियों से
अनजाने सफर पर
कहलाने ‘खानाबदोश’ खुद को,
न कभी थकते पाँव उनके
न ही रोकते कभी
वो अपनी यात्रा को ।

Language: Hindi
573 Views
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