Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Oct 2017 · 3 min read

क्यों न दिवाली कुछ ऐसे मनायें

क्यों न दिवाली कुछ ऐसे मनायें
दिवाली यानी रोशनी, मिठाईयाँ, खरीददारी , खुशियाँ और वो सबकुछ जो एक बच्चे से लेकर बड़ों तक के चेहरे पर मुस्कान लेकर आती है।
प्यार और त्याग की मिट्टी से गूंथे अपने अपने घरौंदों को सजाना भाँति भाँति के पकवान बनाना नए कपड़े और पटाखों की खरीददारी !
दीपकों की रोशनी और पटाखों का शोर
बस यही दिखाई देता है चारों ओर।
हमारे देश और हमारी संस्कृति की यही खूबी है।
त्यौहार के रूप में मनाए जाने वाले जीवन के ये दिन न सिर्फ उन पलों को खूबसूरत बनाते हैं बल्कि हमारे जीवन को अपनी खुशबू से महका जाते हैं।
हमारे सारे त्यौहार न केवल एक दूसरे को खुशियाँ बाँटने का जरिया हैं बल्कि वे अपने भीतर बहुत से सामाजिक संदेश देने का भी जरिया हैं।
भारत में हर धर्म के लोगों के दीवाली मानने के अपने अपने कारण हैं
जैन लोग दीवाली मनाते हैं क्योंकि इस दिन उनके गुरु श्री महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था।
सिख दीवाली अपने गुरु हर गोबिंद जी के बाकी हिंदू गुरुओं के साथ जहाँगीर की जेल से वापस आने की खुशी में मनाते हैं।
बौद्ध दीवाली मनाते हैं क्योंकि इस दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था।
और हिन्दू दीवाली मनाते हैं अपने चौदह वर्षों का बनवास काटकर प्रभु श्रीराम के अयोध्या वापस आने की खुशी में।
हम सभी हर्षोल्लास के साथ हर साल दीवाली मनाते हैं लेकिन इस बार इस त्यौहार के पीछे छिपे संदेशों को अपने जीवन में उतारकर कुछ नई सी दीवाली मनाएँ। एक ऐसी दीवाली जो खुशियाँ ही नहीं खुशहाली लाए। आज हमारा समाज जिस मोड़ पर खड़ा है दीवाली के संदेशों को अपने जीवन में उतारना बेहद प्रासंगिक होगा।
तो इस बार दीवाली पर हम किसी रूठे हुए अपने को मनाकर या फिर किसी अपने से अपनी नाराजगी खुद ही भुलाकर खुशियाँ के साथ मनाएँ।
दीवाली हम मनाते हैं राम भगवान की रावण पर विजय की खुशी में यानी बुराई पर अच्छाई की जीत, तो इस बार हम भी अपने भीतर की किसी भी एक बुराई पर विजय पाएँ , चाहे वो क्रोध हो या आलस्य या फिर कुछ भी।
दीवाली हम मनाते हैं गणेश और लक्ष्मी पूजन करके तो हर बार की तरह इस बार भी इनके प्रतीकों की पूजा अवश्य करें लेकिन साथ ही किसी जरूरतमंद ऐसे नर की मदद करें जिसे स्वयं नारायण ने बनाया है शायद इसीलिए कहा भी जाता है कि ” नर में ही नारायण हैं”।
और किसी शायर ने भी क्या खूब कहा है,
घर से मस्जिद है बहुत दूर तो कुछ ऐसा किया जाए
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए।
तो इस बार किसी बच्चे को पटाखे या नए कपड़े दिलाकर उसकी मुस्कुराहट के साथ दीवाली की खुशियाँ मनाएँ और इस दीवाली अपने दिल की आवाज को पटाखों के शोर में दबने न दें।
दीवाली हम मनाते हैं दीपक जलाकर। अमावस की काली अंधेरी रात भी जगमगा उठती है तो क्यों न इस बार अपने घरों को ही नहीं अपने दिलों को रोशन करें और दीवाली दिलवाली मनाएँ जिसकी यादें हमारे जीवन भर को महकाएँ।
दीवाली का त्यौहार हम मनाते हैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ। ये हमें सिखाते हैं कि अकेले में हमारे चेहरे पर आने वाली मुस्कुराहट अपनों का साथ पाकर कैसे ठहाकों में बदल जाती है।
यह हमें सिखाती है कि जीवन का हर दिन कैसे जीना चाहिए, एक दूसरे के साथ मिलजुल कर मौज मस्ती करते हुए एक दूसरे को खुशियाँ बाँटते हुए और आज हम साल भर त्यौहार का इंतजार करते हैं जीवन जीने के लिए,एक दूसरे से मिलने के लिए,खुशियाँ बाँटने के लिए।
लेकिन इस बार ऐसी दीवाली मनाएँ कि यह एक दिन हमारे पूरे साल को महका जाए और रोशनी का यह त्यौहार केवल हमारे घरों को नहीं बल्कि हमारे और हमारे अपनों जीवन को भी रोशन कर जाए।
हमारी छोटी सी पहल से अगर हमारे आसपास कोई न हो निराश,तो समझो दीवाली है।
हमारे छोटे से प्रयास से जब दिल दिल से मिलके दिलों के दीप जलें और उसी रोशनी से,
हर घर में हो प्रकाश तो समझो दीवाली है।
डाँ नीलम महेंद्र

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 290 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मुश्किलों से क्या
मुश्किलों से क्या
Dr fauzia Naseem shad
गुलाब के काॅंटे
गुलाब के काॅंटे
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
अगर आपमें मानवता नहीं है,तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क
अगर आपमें मानवता नहीं है,तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क
विमला महरिया मौज
कभी कभी
कभी कभी
Shweta Soni
काश कि ऐसा होता....
काश कि ऐसा होता....
Ajay Kumar Mallah
ए कुदरत के बंदे ,तू जितना तन को सुंदर रखे।
ए कुदरत के बंदे ,तू जितना तन को सुंदर रखे।
Shutisha Rajput
किसी की गलती देखकर तुम शोर ना करो
किसी की गलती देखकर तुम शोर ना करो
कवि दीपक बवेजा
*एकता (बाल कविता)*
*एकता (बाल कविता)*
Ravi Prakash
संगिनी
संगिनी
Neelam Sharma
नीचे तबके का मनुष्य , जागरूक , शिक्षित एवं सबसे महत्वपूर्ण ब
नीचे तबके का मनुष्य , जागरूक , शिक्षित एवं सबसे महत्वपूर्ण ब
Raju Gajbhiye
रात बदरिया...
रात बदरिया...
डॉ.सीमा अग्रवाल
सुनो पहाड़ की...!!! (भाग - ९)
सुनो पहाड़ की...!!! (भाग - ९)
Kanchan Khanna
कविता-
कविता- "हम न तो कभी हमसफ़र थे"
Dr Tabassum Jahan
सुबह भी तुम, शाम भी तुम
सुबह भी तुम, शाम भी तुम
Writer_ermkumar
*शीत वसंत*
*शीत वसंत*
Nishant prakhar
तूने ही मुझको जीने का आयाम दिया है
तूने ही मुझको जीने का आयाम दिया है
हरवंश हृदय
कल देखते ही फेरकर नजरें निकल गए।
कल देखते ही फेरकर नजरें निकल गए।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
संघर्ष से‌ लड़ती
संघर्ष से‌ लड़ती
Arti Bhadauria
दो ही हमसफर मिले जिन्दगी में..
दो ही हमसफर मिले जिन्दगी में..
Vishal babu (vishu)
मैं कहना भी चाहूं उनसे तो कह नहीं सकता
मैं कहना भी चाहूं उनसे तो कह नहीं सकता
Mr.Aksharjeet
ये  भी  क्या  कमाल  हो  गया
ये भी क्या कमाल हो गया
shabina. Naaz
जिसने अस्मत बेचकर किस्मत बनाई हो,
जिसने अस्मत बेचकर किस्मत बनाई हो,
Sanjay ' शून्य'
स्वयंसिद्धा
स्वयंसिद्धा
ऋचा पाठक पंत
राष्ट्रीय गणित दिवस
राष्ट्रीय गणित दिवस
Tushar Jagawat
दान की महिमा
दान की महिमा
Dr. Mulla Adam Ali
लीकछोड़ ग़ज़ल / MUSAFIR BAITHA
लीकछोड़ ग़ज़ल / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
बाकी है...!!
बाकी है...!!
Srishty Bansal
■ पाठक लुप्त, लेखक शेष। मुग़ालते में आधी आबादी।
■ पाठक लुप्त, लेखक शेष। मुग़ालते में आधी आबादी।
*Author प्रणय प्रभात*
नाज़ुक सा दिल मेरा नाज़ुकी चाहता है
नाज़ुक सा दिल मेरा नाज़ुकी चाहता है
ruby kumari
हक़ीक़त
हक़ीक़त
Shyam Sundar Subramanian
Loading...