क्या मैं कवि….?
संग्रह में मेरे कविताओं का अंबार है,
किन्तु मैं कवि, दिल मानने को कहा तैयार है।
कहते है लोग आप लिखते अच्छा है
पर दिल की सुने तो हम कच्चा हैं।
सोचता हूँ एक न एक दिन, पुस्तक हम छपवायेंगे।
दिल की बात अगर करे हम , पैसे कहाँ से आयेंगे।
तो क्या मेरे सपनों का यही विराम है।
या फिर पैसों से हटकर भी रास्ते तमाम है।
मेरे अरमानों का ऐ कैसा हस्रे अंजाम है।
या इससे उलट “मेधा” का कोई दुजा संसार है।
क्या मै कभी कवि कहलाऊंगा,
या यूँ ही फेसबुक पर लिखता जाऊंगा।
आप है मेरे यार अवश्य कोई रास्ता सुझाऐंगे
या दिल की तरह आप भी मेरा माखौल उड़ायेंगे।
©…..पं.संजीव शुक्ल “सचिन”