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8 Sep 2017 · 1 min read

कुर्सियाँ अपनी लेकर किधर जाएंगे

कुर्सियाँ अपनी लेकर किधर जाएंगे
ये तो नेता हैं खुद ही उतर जायेंगे

देखना वोट पाने को नेता यहां
अब दिलों में जहर कितना भर जाएंगे

बात घर की सड़क पर ले आये हो जब
सब तमाशा ही अब देखकर जाएंगे

देश पर आंच आने न देंगे कभी
जान हम अपनी कुर्बान कर जाएंगे

रेशमी डोर में रिश्तों के मोती हैं
खींचने से ये मोती बिखर जायेंगे

रुष्ट हो जाएगी अपनी कुदरत बहुत
काटे धरती के जब भी शजर जाएंगे

नफरतों के सिवा कुछ मिला ही नहीं
प्यार पाया तो हम भी सँवर जायेगे

आप ही आप आएंगे हमको नज़र
‘अर्चना’ देखिये हम जिधर जाएंगे

डॉ अर्चना गुप्ता
08-09-2017

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