कुर्सियाँ अपनी लेकर किधर जाएंगे
कुर्सियाँ अपनी लेकर किधर जाएंगे
ये तो नेता हैं खुद ही उतर जायेंगे
देखना वोट पाने को नेता यहां
अब दिलों में जहर कितना भर जाएंगे
बात घर की सड़क पर ले आये हो जब
सब तमाशा ही अब देखकर जाएंगे
देश पर आंच आने न देंगे कभी
जान हम अपनी कुर्बान कर जाएंगे
रेशमी डोर में रिश्तों के मोती हैं
खींचने से ये मोती बिखर जायेंगे
रुष्ट हो जाएगी अपनी कुदरत बहुत
काटे धरती के जब भी शजर जाएंगे
नफरतों के सिवा कुछ मिला ही नहीं
प्यार पाया तो हम भी सँवर जायेगे
आप ही आप आएंगे हमको नज़र
‘अर्चना’ देखिये हम जिधर जाएंगे
डॉ अर्चना गुप्ता
08-09-2017