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2 Jul 2017 · 1 min read

“काश कोई रखवाला होता”

“काश कोई रखवाला होता”
*******************
अपमानों के पंख लगाके, इस दुनिया में आई थी।
रूप रंग श्रृंगार देख के, सबके मन को भाई थी।
बड़े प्यार से बाँह थाम कर, चरखी का संग पाया था।
मतवाले दो हाथों ने भी, ढेरों नेह लुटाया था।
बँधी डोर से खुले गगन में, ऊँचाई को छू जाती।
रंग-बिरंगी सखियों को पा,झूम भाग्य पर इठलाती।
कभी उड़ी मैं कभी गुची मैं, पेंच दाँव पर लग जाते।
कटते-गिरते देख धरा पर, कितने हाथ मचल जाते।
लूट रहे थे नोंच रहे थे, अपमानित हो रोती थी।
आशाओं के दीप बुझा कर, मान-सम्मान खोती थी।
आज कहीं स्वच्छंद गगन में ,मेरा भी इक घर होता।
नहीं उजड़ता जीवन मेरा, जो इक रखवाला होता।

डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)

Language: Hindi
1 Like · 264 Views
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