काव्य का जन्म ( कविता)
काव्य का जन्म (कविता)
कौन देखता है?,
किसे खबर है?,
की कोई रोता है वीराने में।
सिसकियाँ भरे या,
फूट-फूट कर रोये,
जी चुराते है सभी हिम्मत बंधाने में।
सावन आया और,
आँचल भिगो गया,
किसका दिल डूबा गम के पैमाने में।
ठोकर लगी ऐसी,
और टुकड़े हुए दिल के,
परन्तु आवाज़ न गूंजी ज़माने में।
भाव मर गए,
प्रेम रो पड़ा,
लेकिन कविता जी उठी अनजाने में।