Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Dec 2016 · 6 min read

कागज़ की कश्ती

आज कुछ बच्चों को कागज़ की नाव चलाते देख कर मुझे मेरा बचपन याद आ गया. मेरा गांव का घर और उसका आंगन. आंगन में भागता मैं और मुझे पकड़ने का प्रयास करती मेरी बड़ी बहन. उनका वह गोल चेहरा मेरी आंखों में तैरने लगा. कस कर बांधी गई दो चोटियां, कान में पहनी हुई सोने की छोटी छोटी बालियां तथा होंठों पर खेलने वाली सदाबहार मुस्कान सब कुछ साफ साफ दिखाई देने लगा. मेरे तथा मुझसे बड़े दोनों भाइयों के लिए वह माँ थीं. खासकर मेरे लिए क्योंकि दस माह की अवस्था में माँ मुझे उन्हें सौंप कर चल बसीं. हम लोग उन्हें जिज्जी कह कर बुलाते थे. एक उम्र तक जिज्जी की गोद ही मेरा सबसे आरामदायक बिस्तर था. उनके सीने से चिपट कर मुझे सबसे अच्छी नींद आती थी.

जिज्जी ने अकेले दम ही घर की सारी ज़िम्मेदारी उठा रखी थी. घर के सारे कामों के साथ साथ अपनी पढ़ाई भी करती थीं. सुबह जल्दी उठ कर पिताजी तथा हम सबका टिफिन तैयार करतीं. उसके बाद स्कूल जातीं. बड़े तथा मंझले भैय्या तो अपने काम स्वयं कर लेते थे किंतु मैं बहुत चंचल था. मुझे स्कूल के लिए तैयार करने के लिए जिज्जी को मेरे पीछे भागना पड़ता था. मैं उनसे अपनी सारी मांगें पूरी करा लेता था. वह मुझे बहुत चाहती थीं. पिताजी अक्सर कहते थे कि बिट्टो यदि तुम ना होतीं तो तुम्हारे भाई अनाथ हो जाते.

मेरा दाख़िला भी उसी स्कूल में कराया गया जहां जिज्जी पढ़ती धीं. मैं रोज़ जिज्जी का हाध पकड़ कर स्कूल जाता था और उन्हीं के साथ लौटता था. अक्सर घर लौटते समय एक लड़का जो जिज्जी के साथ पढ़ता था हमारे पीछे पीछे आता था. कभी कभी जिज्जी एकांत में उससे कुछ बातें कर लेती थी. हर बार वह मुझे हिदायत देती थी कि इस बारे में मैं दोनों भाइयों तथा पिताजी से कुछ ना कहूं. मैं जिज्जी की हर बात मानता था इसलिए मैं किसी से कुछ नहीं कहता था. हलांकि वह लड़का मुझे पसंद नहीं था. उसके साथ होने पर जिज्जी मुझ पर कम ध्यान देती थी.
आठवीं पास करने के बाद जिज्जी के सामने भी वही समस्या आई जो गांव की अन्य स्कूल जाने वाली लड़कियों के सामने आती थी. आगे की पढ़ाई के लिए गांव में कोई स्कूल नहीं था. अतः लड़कियां आगे पढ़ाई छोड़ देती थीं. लेकिन पिताजी ने फैसला किया कि जिज्जी आगे की पढ़ाई घर पर रह कर करेंगी तथा प्राईवेट फार्म भरेंगी. जिज्जी पढ़ने में अच्छी थीं. उन्होंने घर पर रह कर तैयारी शुरू कर दी. पिताजी भी कभी कभी मदद कर देते थे.

एक दिन स्कूल में मेरी तबीयत कुछ बिगड़ गई. अतः मास्टरजी ने मुझे घर जाकर आराम करने को कहा. मैं घर आकर सीधा जिज्जी के कमरे में गया. वहां वह लड़का मौजूद था जो पहले जिज्जी का पीछा करता था. मुझे अचानक आया देख कर जिज्जी असहज हो गईं. उन्होंने उस लड़के से जाने के लिए कहा. उसने मुझे घूर कर देखा और बाहर निकल गया. मुझे उस लड़के का वहां होना अच्छा नहीं लगा यह बात मेरे चेहरे से झलक रही थी. जिज्जी ने मुझसे विनय की कि मैं उस लड़के के यहां होने की बात किसी से ना कहूं. ” वह लड़का मुझे अच्छा नहीं लगता. ” मैंने गुस्से से कहा. ” पर अगर तुमने सबको यह बात बताई तो सब मुझ पर गुस्सा होंगे. क्या तुम चाहते हो कि पिताजी मुझसे नाराज़ हो जाएं. ” मैं नहीं चाहता था कि जिज्जी को दुख पहुंचे. अतः मैंने किसी से कुछ नहीं कहा.

जिज्जी ने दसवीं की परीक्षा पास कर ली. पिताजी चाहते थे कि बाहरवीं का इम्तेहान भी जिज्जी प्राईवेट दें. लेकिन बुआ इसके सख़्त ख़िलाफ थीं. उनका कहना था कि जितना पढ़ा दिया है वह बहुत है. वह चाहती थीं कि जिज्जी का ब्याह उनके सुझाए हुए लड़के से कर दिया जाए. एक दिन मैंने उन्हें पिताजी से कहते सुना ” बात को समझो, बिन माँ की बच्ची है. कल अगर कुछ ऊंच नीच कर बैठी तो मुश्किल हो जाएगी. मेरी मानो तो इसका ब्याह करके छुट्टी पाओ. ” मुझे बुआ की बात बहुत बुरी लगी. जिज्जी ब्याह कर किसी और के घर चली जाएंगी यह विचार मुझे डरा रहा था. मैं किसी भी कीमत पर उन्हें खोना नहीं चाहता था. बुआ का घर आना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था. जब भी वह घर आतीं तो हम तीनों भाइयों को बात बात पर डांट पिलातीं थीं. फूफाजी कलकत्ता की अपनी नौकरी छोड़ कर हमारे घर के पास ही रहने आ गए थे. अतः बुआ का हमारे घर पर आना जाना बढ़ गया था. वह घर पर अपना वर्चस्व जमाने का प्रयास कर रही थीं. पिताजी भी उनके कहे अनुसार चलते थे. लेकिन बुआ ने जो रिश्ता सुझाया था वहां बात नहीं बन पाई. अतः पिताजी ने कहा कि जब तक कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिलता तब तक जिज्जी अपनी पढ़ाई जारी रखें.

एक दिन की बात है मैं दोस्तों के साथ खेल रहा था. अंधेरा होने पर हम सभी अपने अपने घरों को लौटने लगे. रास्ते में जामुन के पेड़ के पास मैंने जिज्जी को किसी से बात करते देखा. मैं कुछ और नज़दीक गया तो देखा कि वह वही लड़का था. ऐसा लगा जैसे किसी बात पर जिज्जी बहुत परेशान हैं. वह उसके सामने गिड़गिड़ा रही थीं. लेकिन वह उनकी बात नहीं मान रहा था. उसने जिज्जी को धक्का दिया और अपनी साइकिल पर बैठ कर भाग गया. जिज्जी जमीन पर गिर पड़ीं. मैंने भाग कर जिज्जी को संभाला. मुझे वहां देख कर वह परेशान हो गईं ” तुम यहां क्या कर रहे हो “. मुझे उस लड़के पर बहुत क्रोध आ रहा था. उनकी बात का जवाब ना देकर मैं बोला ” आज मैं पिताजी से उसकी शिकायत करूंगा. उसे डांट पड़वाऊंगा. तब उसकी अक्ल ठिकाने आएगी. ” जिज्जी चीख पड़ीं ” तुमको मेरी कसम किसी से कुछ ना कहना. अगर तुमने कुछ कहा तो मेरा मरा मुख देखोगे. ” उनके इस प्रकार चीखने से मैं दहल गया. मैंने किसी से कुछ नहीं कहा.

पिछले कई दिनों से जिज्जी परेशान लग रही थीं. पर आज की घटना से एकदम ही गुमसुम हो गईं. रात को जब पिताजी खाने बैठे तो बोले ” तेरा जी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है बिट्टो. तूने मुझे जली हुई रोटियां परोसी हैं. ”

जिज्जी घबरा गईं ” मैं अभी दूसरी रोटियां सेंक देती हूं. ” पिताजी ने उन्हें अपने पास बुला कर प्यार से कहा ” रहने दे जा कर आराम कर. ”
जिज्जी अपने कमरे में आराम करने चली गईं. मैं भी उनके पीछे पीछे चला गया. मुझे देख कर बोलीं ” तुम बड़े हो गए हो. अब भाइयों के साथ सोया करो. ” उनकी परेशानी देख कर मैंने कुछ नहीं कहा. चुपचाप जाकर दोनों भाइयों के बीच सो गया.

सुबह जब मैं उठा तो देखा कि मंझले भइया रो रहे हैं और बड़े भइया उन्हें चुप करा रहे थे. मैंने पूछा तो मंझले भइया ने सुबकते हुए कहा ” जिज्जी हमें छोड़ कर चली गईं. ” मैं भाग कर जिज्जी के कमरे में गया. वहां बुआ और पिताजी मौजूद थे. फर्श पर जिज्जी की लाश पड़ी थी. मैं देखते ही फूट फूट कर रोने लगा. बुआ मुझे गोद में बैठा कर चुप कराने लगीं. मैंने पिताजी की तरफ देखा. उनके चेहरे पर क्रोध, अपमान और घृणा के मिले जुले भाव थे. बुआ की तरफ देख कर बोले ” कुलक्षणी कलंक लगा गई. ” उस वक्त उनके चेहरे के भाव देख कर मैं दहल गया. गोद से उतर कर मैं बाहर भाग आया. आकाश पर काले बादल छाए थे. अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई.

जब कभी बारिश होती थी तो जिज्जी छज्जे पर खड़ी हो जाती थीं. अपनी हथेली में पानी भर कर मेरी तरफ उछालती थीं. बारिश के ख़त्म होने पर अपनी कॉपी से पन्ना फाड़ कर मेरे लिए नाव बनाती थीं. उसे मैं गढ्ढों में भरे पानी में तैराता था. उस दिन भी जिज्जी ने अपनी कॉपी का पन्ना फाड़ा था लेकिन अपनी अंतिम पंक्तियाँ लिखने के लिए।
जिज्जी के मरने के बाद पिताजी ने हमें पाला. घर में जिज्जी का कभी कोई ज़िक्र नहीं होता था. ना ही माँ की तरह उनकी कोई तस्वीर लगाई गई थी. मैं छोटा था जिज्जी के दर्द को समझ नहीं सका. जब बड़ा हुआ तब स्त्री होने की वेदना समझ में आई कि एक लड़की तो अपने मन को बड़ा कर माँ की भूमिका निभा सकती है लेकिन यह समाज उसकी एक भूल को उदारता से सह नहीं सकता. उसके प्रायश्चित में उसे अपने प्राण देने पड़ते हैं.

Language: Hindi
367 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Living life now feels like an unjust crime, Sentenced to a world without you for all time.
Living life now feels like an unjust crime, Sentenced to a world without you for all time.
Manisha Manjari
*बुरे फँसे कवयित्री पत्नी पाकर (हास्य व्यंग्य)*
*बुरे फँसे कवयित्री पत्नी पाकर (हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
जस गीत
जस गीत
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
बाबा भीम आये हैं
बाबा भीम आये हैं
gurudeenverma198
कुछ पल अपने लिए
कुछ पल अपने लिए
Mukesh Kumar Sonkar
संसार में मनुष्य ही एक मात्र,
संसार में मनुष्य ही एक मात्र,
नेताम आर सी
मैं जाटव हूं और अपने समाज और जाटवो का समर्थक हूं किसी अन्य स
मैं जाटव हूं और अपने समाज और जाटवो का समर्थक हूं किसी अन्य स
शेखर सिंह
फादर्स डे ( Father's Day )
फादर्स डे ( Father's Day )
Atul "Krishn"
Stop getting distracted by things that have nothing to do wi
Stop getting distracted by things that have nothing to do wi
पूर्वार्थ
*
*"जहां भी देखूं नजर आते हो तुम"*
Shashi kala vyas
वक्त गिरवी सा पड़ा है जिंदगी ( नवगीत)
वक्त गिरवी सा पड़ा है जिंदगी ( नवगीत)
Rakmish Sultanpuri
असर-ए-इश्क़ कुछ यूँ है सनम,
असर-ए-इश्क़ कुछ यूँ है सनम,
Amber Srivastava
जरुरत क्या है देखकर मुस्कुराने की।
जरुरत क्या है देखकर मुस्कुराने की।
Ashwini sharma
गांधी जी के आत्मीय (व्यंग्य लघुकथा)
गांधी जी के आत्मीय (व्यंग्य लघुकथा)
दुष्यन्त 'बाबा'
माली अकेला क्या करे ?,
माली अकेला क्या करे ?,
ओनिका सेतिया 'अनु '
*ख़ुशी की बछिया* ( 15 of 25 )
*ख़ुशी की बछिया* ( 15 of 25 )
Kshma Urmila
ग़ज़ल/नज़्म - मुझे दुश्मनों की गलियों में रहना पसन्द आता है
ग़ज़ल/नज़्म - मुझे दुश्मनों की गलियों में रहना पसन्द आता है
अनिल कुमार
इश्क वो गुनाह है
इश्क वो गुनाह है
Surinder blackpen
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
याराना
याराना
Skanda Joshi
समझदार बेवकूफ़
समझदार बेवकूफ़
Shyam Sundar Subramanian
मत याद करो बीते पल को
मत याद करो बीते पल को
Surya Barman
#प्रातःवंदन
#प्रातःवंदन
*Author प्रणय प्रभात*
जीवन का हर वो पहलु सरल है
जीवन का हर वो पहलु सरल है
'अशांत' शेखर
Help Each Other
Help Each Other
Dhriti Mishra
Collect your efforts to through yourself on the sky .
Collect your efforts to through yourself on the sky .
Sakshi Tripathi
3250.*पूर्णिका*
3250.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
-- गुरु --
-- गुरु --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
जीवन
जीवन
Monika Verma
माँ
माँ
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
Loading...