कह दो रात चली अब जाए
कह दो रात चली अब जाए!
सूरज निकला नही अभी तक
अरूण तथापि गगन में छाए
आहट है ये परिवर्तन की
चिड़िया जोर जोर से गाए
कह दो रात चली अब जाए
नभ मे स्मित आ रही दिखी है
क्या उपमा दू सब घिसी पिटी है
सरसिज देख देख मुस्काए
कह दो रात चली अब जाए
सारी रात गगन रोया है
जबकि सारा जग रोया है।
वसुधा दूर नभ दुखी दिखाए
कह दो रात चली अब जाए
छटा अंधेरा उत्तुंग गगन से
धरती हर्षित हुई मगन से।
दूर सही पर प्रिय दिखलाए
कह दो रात चली अब जाए ।