कवि की नजर मेंं देश दुनिया
क्या कुछ घट रहा है दुनिया में
देखता हूँ और दंग हूँ
सत्य कहूं तो खुद की हालात से भी तंग हूँ।
काम चल नहीं रहा पैसों की मारा मारी है
कईयों को तो इस हालात में भी
उधार मांगने की अजीब बिमारी है।
मन बहलाने को कभी कभार टीवी देख लेता हूँ
कभी क्रिकेट तो कभी न्यूज पे
आंखें सेंक लेता हूँ
समाचार भी नाजाने क्या-क्या आने लगे है
बेमतलब न्यूज में भी ऐंकर
मिर्च मसाला लगाने लगे है।
वे भी करें क्या हर तरफ टीआरपी का खेल है
वैसे इनके समाचारों का वास्तविकता से
शायद ही कहीं कोई मेल है।
धर्म के धुरंधर अब टीवी पे आने लगे है
अपने कारनामों से जन-जन पे छाने लगे है
यहाँ तक कि जेल भी जाने लगे है
सरकार की कहें तो प्रगति का बोलबाला है
जनता परेशान है फिर भी मुख पे ताला है।
नोट बंदी, जीएसटी देश को बढाऐंगे
देश बढे ना बढे किन्तु गरीब को सतायेंगे
रेलमंत्री ने इस्तीफा दिया कारण
रेल जो लड़ी है
चलो विपक्ष के हाथ जिन्दा बटेर जो लगी है
किन्तु एक बात तो है
इसबार मुआवजे की रकम पहले से बढी है।
मंहगाई का जोर है
चहुंओर भ्रष्टाचार घनघोर है
स्वदेशी का बोलबाला है कारण
बाबा रामदेव जी ने पतंजलि जो सम्भाला है।
फैशन ऐसा वस्त्र पहने है फिर भी नंगे हैं
गंजों के सर बीग, बाल वाले गंजे है
लड़कियां बाल कटाने लगीं
लड़के चोटी बढाने लगे
अबका ये घटनाक्रम वाकई काबिलेगौर है
जिधर देखें उधर नग्नता का दौर है
ईश्वर की खोज में मिडिया जाने लगी है
धर्म को धंधा बना टीआरपी बढाने लगी है।
यह सब देख कवि का मन रोने लगा है
“सचिन” सर का बाल नोच रहा
आपा खोने लगा है।।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
1/9/2017