कविता : ??.. प्रिय! तेरी यादें..??
प्रिया!तेरी यादें मन-मंदिर में दीप-सी जलती हैं।
स्वर्ण किरणों-सी मुख आलोकित करती रहती हैं।।
रिमझिम-रिमझिम बूँद-सी बरसें,
मन-उपवन में ये गिरती हैं।
मानस सागर में लोल लहर-सी,
विचरण करती ये रहती हैं।
आँखों में स्वप्न बनकर हरपल,
होठों पर सरग़म-सी सजती हैं।
प्रिया!तेरी यादें……….।
हिरणों-सी ही चंचल हैं ये यादें,
जो हृदय-वन में दौड़ती हैं।
दुल्हन-सी सजके नयन में कभी,
दुल्हा-मन आकर्षित करती हैं।
मयूर-सी नृत्य करती हृदयतल ये,
पपीहे-सी ही मन को हरती हैं।
प्रिया!तेरी यादें……….।
बुलबुल-सा गीत मनोहर गाती ये,
मन के कोने-कोने सिहरती हैं।
कोयल की कूक-सी मधुर बनकर,
वसन्त की आभा मन भरती हैं।
चातक-से व्याकुल प्यासे मन में ये,
बारिश बनकर गिरती ही रहती हैं।
प्रिया!तेरी यादें…………।
फूलों के रंग सुगंध-सी नवरस लिए,
वसन्त-हृदय में बारात-सी आती।
कभी मुस्क़राकर चाँद-सी ये “प्रीतम”,
हृदय में अपनी चाँदनी हैं बरसाती।
कस्तूरी की गंध-सी बनकर कभी ये,
हिरणों-सा पागल करती रहती हैं।
प्रिया!तेरी यादें…………।
…राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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