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21 Jul 2017 · 1 min read

कविता :–मंज़िलें–

मंज़िलें ज़ुनून से मिलें,सुक़ून से नहीं।
प्यार दिल से करो तुम,ख़ून से नहीं।
तक़दीरों के भरोसे ज़िंदगी क्या जीना,
इतिहास कर्म से बनता,ऊन से नहीं।
…….
चलो पथिक अग्रसर दीवानों की तरह।
जलो शम्मा पर तुम परवानों की तरह।
जग तुम्हें तभी याद रखेगा,सुनलो तुम!
मिटोगे या मिटाओगे दुश्मनों की तरह।
…….
बरसात वातावरण स्वच्छ बनाती देखी।
मुलाकात दिलों को सदा मिलाती देखी।
फूल तो कागज़ से भी बनाए जाते हैं,
पर ख़ूशबू असली फूलों से आती देखी।
…….
धोखे से तन जीत सकें मन नहीं हम।
पैसे से वाद्ययंत्र मिलते फ़न नहीं प्रीतम।
ग़ैरों पर भरोसा न करो पैरों पर करो,
ग़ैर देते हैं धोखा पर नहीं देते क़दम।
…….
अपने भरोसे चला वो मुक़ाम पा गया।
काँटों से तो फूल भी ज़ख्म खा गया।
सूरत से सीरत का अंदाज़ नहीं लगता,
कोयले की खान से हीरा सिखा गया।

राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
प्रवक्ता हिंदी
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय
किरावड़ (भिवानी)
पिन कोड..127035

Language: Hindi
349 Views
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