कविता : दो ही चीज़ ग़ज़ब की हैं~~●●??
मनुज मन मंदिर तो दिल समन्दर है।
इस धरा पर भगवान सबके अंदर है।।
फूल में ख़ुशबू ज्यों चाँद में चाँदनी।
पदार्थ में उर्जा ज्यों तन-रुह पावनी।।
भ से भूमि ग से गगन व से वायु।
अ से अग्नि न से नीर मिले आयु।।
भगवान का पूर्ण अर्थ समझिए बंदे।
पंंच तत्व से भगवान,इंसान बना बंदे।।
भगवान मनुज में मनुज भगवान में।
एक कुल एक अंश है एक तान में।।
फिर क्यों भटके,भेदभाव तू रट-रट।
धर्म मानवता जाए जिसमें सब सिमट।।
शिक्षित बन समझ जगत् की महिमा।
पट मन के खोल ये तीर्थों की सीमा।।
मंदिर,मस्ज़िद,चर्च,गुरु-द्वारे मन में हैं।
काबा,कैलास,काशी ये बसे तन में हैं।।
तू श्रेष्ठ कृति,देववृत्ति ताकत सब है।
तू सर्वोपरि सुप्तशक्तिमय नर ग़ज़ब है।।
भटका न कर समझाकर नेतृत्त्व करले।
जगत् मिथ्या रब सच्चा तू हृदय धरले।।
मेहनत पूजा भाग्य भूल तज़ुर्बा सत्य है।
गन्तव्य संघर्ष पर मरती जाँचा तथ्य है।।
वृक्ष जल से सींचो फूले-फलते देखोगे।
जीवन को श्रम से देवता बनते देखोगे।।
इस संसार में दो ही चीज़ ग़ज़ब की हैं।
एक श्रम एक तुम उपज भू-नभ की हैं।।
नेक नीयत नेक सीरत नेक जीवन ताल।
अपना इन्हें वो मिले दुनिया कहे कमाल।।
…राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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