कविता… दोस्ती
दोस्त तेरी क़सम है,कृष्ण-सुदामा से न यह कम है।
बिन कहे दर्द समझुँ न,मैं भी गुम यार दोस्ती गुम है।।
नैनों में मेरे तू,हँसे है किसी फूल की तरह।
दिल में मेरे बसता,मुहब्बतों के उसूल की तरह।
यार के प्यार में भी,सूरज की रोशनी-सा दम है।
बिन कहे……………………।
राह में फूल बनकर,तू कहे तो मैं बिखर जाऊँगा।
तू जिए हज़ार वर्ष,रब से यार लिए दुवा चाहूँगा।
यार की चाहत से,बड़ी न यहाँ शै है न रस्म है।
बिन कहे……………………।
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राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”