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4 May 2017 · 1 min read

कविता : तुम डाल-डाल,हम पात-पात…..???

गोलियों की बौछार से या तीर तलवार से।
जीतना है संग्राम,चाहे किसी भी हथियार से।
साम,दाम,दंड,भेद कोई भी नीति अपनाकर,
दहलाना शत्रु का कलेजा सिंह की हुंकार से।

दो सिर के बदले पचास सिर काटने होंगें।
आँसू बदले की आग से अब छांटने होंगें।
वो डाल-डाल हैं तो हम पात-पात हैं,सुनो!
आगे बढ़ते शत्रु के क़दम वहीं डाटने होंगें।

हवाएँ ये आँधियाँ न बन जाएं हिंदवासियो।
रूख इनका मोड़ दें,हे!हिंद के निवासियो।
अब होने दो शिव का तांडव प्रचंड यहाँ,
मिटा दो पाक हौसले,उठो,बढ़ो साहसियो।

चार बार हारा फिर भी सबक़ नहीं सीखा।
गिरा मुँह के बल फिर भी गिरगिट सरीख़ा।
शैतानी पर शैतानी करता आया है नादानी,
अब मौक़ा नहीं,सिखा दो रहम का सलीख़ा।

कब तलक लहू से अपने रंगते रहोगे वीरो!
कब तलक हाथ बाँधे छलते रहोगे रणधीरो।
अब वक्त कुछ करके दिखाने का आया है,
सबक शत्रु को सिखाने का आया है शूरवीरो।

क़सम तिरंगे की पानी-पानी पाक को करदो।
फिर न उठे ये कभी ज़िस्म में बारूद भरदो।
सौ बार सोचे गद्दारी,शैतानी करने से पहले,
सीने पर पाक के वीरता का ऐसा असर दो।
*************
*************
राधेयश्याम….बंगालिया….प्रीतम….कृत

Language: Hindi
1134 Views
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