कविता:ये प्यार कैसा
स्वार्थ में बंधा है तो फिर प्यार कैसा।
शर्त मे अंधा है तो फिर प्यार कैसा।
हँसते हँसाते जीवन रंगीन बना दे जो,
उसपर लुटा दो दिल फिर भार कैसा।
……???
स्वार्थ में बंधा है तो फिर प्यार कैसा।
शर्त मे अंधा है तो फिर प्यार कैसा।
हँसते हँसाते जीवन रंगीन बना दे जो,
उसपर लुटा दो दिल फिर भार कैसा।
……???