कल्पतरु चालीसा
स्वामी विद्यानंद जी, नरहरि केशवानंद।
साईंधाम की पुण्यधरा पर, चहु ओर आनंद।।
कल्पतरु अभियान है, कदम्ब का अवतार।
जड़बुद्धि’कल्प’ बखान करे,जीव-जगत का सार।।
अँगना तुलसी पौध लगावे।सकल सिद्धि सुख संपत्ति पावे।।
पर्यावरण की करे जो रक्षा, जीव-जगत की होय सुरक्षा।।
बसुधा का श्रृंगार वृक्ष हैं। जीवन का आधार वृक्ष हैं।।
वृक्षों की महिमा है न्यारी। जीव-जगत के पालनहारी।।
कन्दमूल जड़ औषधिकारी। तनाछाल फलफूल सुखारी।।
थल-नभचर के आश्रयदाता। तुम ही मात-पिता अरु भ्राता।।
पृथ्वी पर जीवन आधारी। जहाँ वृक्ष वहाँ जीव सुखारी।
हवा छाँव अरु जल के दाता, थका पथिक भी आश्रय पाता।।
भूमि वायु अग्नि नभ नीरा। पंचतत्व भगवान शरीरा।।
ईश ख़ुदा गुरू देव का वासा। सर्व धर्म जीवन की आसा।।
जीवों के तुम जीवन दाता। नदियों के हो भाग्यविधाता।।
जलस्तर ऊपर तुम लाते। हर कृषक की प्यास बुझाते।।
मेघों से जब तुम टकराते। वर्षा बन पृथ्वी पर आते।।
तुम से ही चहुदिश हरियाली। तुम बिन भुखमरी अरु कंगाली।।
मात-पिता जग स्वारथ रीति। सन्तानों पर मोह परिती।।
तरु जीवन निःस्वारथ ऐंसा। पर उपकारी ना तुम जैसा।।
परहित धर्म न वृक्ष सामना। समरसता का भाव जगाना।।
तुम समान न कोउ उपकारी। सकल जीव के पालनहारी।।
अमृत देकर विष खुद पीते। प्राणवायु बिन जीव न जीते।।
जनम मरण तक साथ निभाते। हर कारज काम जो आते।।
औषधियाँ तुम से ही बनती। हर पीड़ा को क्षण में हनती।।
परपोषी हम तुम हो स्वामी। भूख हरो तुम अन्तर्यामी।।
सकल जीव की भूख मिटाते। पादप परहित धरम निभाते।।
एकै ग्रह वसुधा पर जीवन। जल वायु है बनी सजीवन।।
पीपल बरगद ब्रम्ह समाना। नीम आँवला औषधि नाना।।
आयुर्वेद में खूब बखाना। हर एक मर्ज का विटप निदाना।।
कल्पतरू परिवार है ऐंसा। नही प्रेम जग में इस जैंसा।।
नाना जाति धरम के लोगा। वरन वरन मिल बन संयोगा।।
नगर देश का मान बढ़ाते। मिलजुल कर सब पेढ लगाते।।
शनिवार दिन है अति प्यारा। उत्सव हर सप्ताह हमारा।।
जंगल की तुम ही से शोभा। नदी उदगम के कारक होवा।।
आओ मिल सब वृक्ष लगावें। माँ वसुधा को स्वर्ग बनावें।।
पर्यावरण की करें जो रक्षा। भावी जीवन होय सुरक्षा।।
नही माँगते किसी से भिक्षा। स्वाभिमान की देते शिक्षा।।
सर्वधर्म समभाव हमारा। कल्पतरू परिवार है प्यारा।।
कल्पतरु ही धरम हमारा। सब धर्मों में सबसे न्यारा।।
सभी धर्म तुमको अपनाते। मिलकर पर्यावरण बचाते।।
जनम दिवस पर वृक्ष लगाओ।यादों को जागीर बनाओ।।
जो वृक्षों का बने उपासक। संतति उसकी रहेंगी शासक।।
दुःखों से अब मुक्ति पाओ। अरविंद ‘कल्प’ विटप लगाओ।।
कल्पवृक्ष स्वर्गलोक तरू,मन्वनञ्छित फल धाए।
कल्पतरू अभियान से,’कल्प’ धरा पर आए।।