करता है जो मुहब्बत बदनाम ही तो है
नज़रें हया से झुकना ये सलाम ही तो है
करता है जो मुहब्बत बदनाम ही तो है
क्यूँ जाएँ मैक़दे में पीने वास्ते
आँखों से रोज पीना इक जाम ही तो है
इस आगरे के ताज को इमारत न मानिए
दुनिया को इश्क़ का ये पैग़ाम ही तो है
जाओ न अपनी बाँहें ऐसे छुड़ा के तुम
कुछ और पल ठहर जा ये शाम ही तो है
है दर्द सहना इश्क़ में दिल का वो टूटना
दिल्लगी में दिलवर से ईनाम ही तो है
हम क़त्ल हो चुके सनम तेरी निगाह से
फिर भी लवों पे मेरे तेरा नाम ही तो है
लाजिम न तुमको कहना हूँ देखता तुम्हें
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
रूठो न हमसे तुम यूँ ही तेरे ख़याल में
दिन रात खोये रहना ये काम ही तो है
जो लोग दर्द झेलते ग़ैरों के वास्ते
दुनिया में आज़ “प्रीतम” गुमनाम ही तो हैं।।