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21 Aug 2016 · 1 min read

कभी वो बेरुखी करता कभी वो आजिज़ी करता

कभी वो बेरुखी करता कभी वो आजिज़ी करता
यही मेरी तमन्ना थी वो मुझसे आशिक़ी करता

वो जिसको देखकर सांसें हमारी थम सी जाती थी
नहीं थे दोस्ती लायक़ तो हमसे दुश्मनी करता

ये सारा शह्र पत्थर हो गया तुझसे बिछड़ते ही
मज़ा वो और होता तू बिछड़ कर वापसी करता

ये आँखें जो मुसलसल देखती है रास्ता तेरा
रुलाने को ही आ जाता तू आकर दिल्लगी करता

नज़ीर नज़र

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