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13 Oct 2016 · 1 min read

कभी भी चोट अपनों से ,यहाँ जब दिल ने’ खायी है

कभी भी चोट अपनों से ,यहाँ जब दिल ने’ खायी है
न जाने पीर क्यों उसकी नज़र आँखों में’आयी है

छिपी रहती जो’ दिल में है वही बस बात है अपनी
निकलती जब लबों से ये तभी होती परायी है

नहीं परवाह अब हमको जमाने की रही देखो
नयी दुनियाँ तुम्हारे सँग सनम जबसे बसायी है

हमें मालूम है हमको बहुत तुम याद करते हो
हमें ये हिचकियों ने बात खुद आकर बतायी है

बरसते बारी बारी से यहाँ सुख दुख भरे बादल
समझ पर ‘अर्चना’ ये बात हमको आज आयी है
डॉ अर्चना गुप्ता

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