कभी कली पे भी हुस्नो ज़माल आएगा
उरुज आज है तो कल ज़वाल आएगा
अगर माँ बाप को घर से निकाल आएगा
दगा है खून में तेरे पता नही तुझको
किसी तो रोज तुझे ये मलाल आएगा
वतन के दूर अँधेरे तभी हो जाएंगे
के जब तू क्रांति की लेकर मशाल आएगा
सहेगा बेटी की रुसवाइयाँ भला कब तक
कभी तो खून में तेरे उबाल आएगा
न रुक सकेंगे क़दम उसके आज मिलने से
के दर्द आँखों में जब तू भी पाल आएगा
न सोच ये कि अभी उम्र उसकी कमसिन है
कभी कली पे भी हुस्नो ज़माल आएगा
न मानता तू बुज़ुर्गों की इस नसीहत को
तो जख़्म खाके तू दिल पर निढाल आएगा
दिखा तो रोक के जज्बात दिल के तू “प्रीतम”
नदी में दिल के कभी तो उछाल आएगा