कदमों में मां के तले सारी खुदाई देख ली
प्यार की शम्मा यहां पर जो जलाई देख ली
खूब की तुमने हमारी जो भलाई देख ली
अब तो है पीना हमें बस लस्सी ही इस गर्मियां
खूब खाकर आज तक ये रस मलाई देख ली
??
दर बदर क्यूं भटके हम दामन को मां के छोड़ कर
कदमों मे मां के तले सारी खुदाई देख
??
जब पिलाया प्यार की लस्सी बनाकर आपने
शरबते लब पीके जां मे जान आई देख ली
??
दिल लगाऊंगा नही ये अहद हमने किया
प्यार में अच्छाई क्या है क्या बुराई देख ली
??
आस्तीं के सांप बनकर आज तक डसते रहे
दोस्त बनकर दोस्ती कैसी निभाई देख ली
??
हमने की तुमसे वफा पर तुमने हमसे की जफ़ा
दोस्त बनकर दोस्ती कैसी निभाई देख ली
??
मेरे दिल मे है छुपी बरसों से ये चिंगारियां
सब हवा देते किसी ने न बुझाई देख ली
??
आ रही बू -ए-जफा अब दामने दिलगीर से
हो गई है इश्क़ में अब जग हंसाई देख ली
?
प्यार का ये खेल कैसा खत्म पल में सब हुआ
दिल मिला न जिस्म उससे पर जुदाई देख ली
??
डस रहे हैं आस्तीं के सांप बनकर के सदा
दूध क्या इनको लहू भी है पिलाई देख ली
??
तीर खंज़र चल रहै हैं जख़्म दिल को लग रहा
आखों की आखों से हमने अब लड़ाई देख ली
??
जिसको चाहा खार बनकर चुभ रहा “प्रीतम” मुझे
आज तक उस बेवफा की बेवफाई देख ली
?
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)