और धोखा मैं खा नहीं सकता
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मैं हँसी खुद नहीं करा सकता
जख़्म दिल का दिखा नहीं सकता
चोट किसने किसने दिया मुझे यारों
नाम उसका बता नहीं सकता
है ग़ुज़ारी ये उम्र गफ़लत में
और धोखा मैं खा नहीं सकता
गर्दिशों में रहे सितारा तो
भाग्य भी जगमगा नहीं सकता
राज़ जो दिल के दरमियां अपने
उससे पर्दा हटा नहीं सकता
अम्न की जो शमअ जलाई है
उसको हरग़िज़ बुझा नहीं सकता
बन गये ग़ैर वक्ते-मुफ़लिस में
अपनों को मैं भुला नहीं सकता
माँ के क़दमों को छोड़ कर “प्रीतम”
जा-ब- जा सिर झुका नहीं सकता
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
१९/०९/२@१७
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