Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Oct 2016 · 2 min read

एक स्वप्न तुम्हारे साथ का

शरद पूर्णिमा का चाँद अपनी सोलहों कलाओं के साथ आकाश के मध्य में विराजमान था। पूरी धरा पर अमृत-रस की वर्षा के साथ शरद ऋतु का आरम्भ हो रहा था। गंगा की लहरों में चंद्रमा का वो प्रतिबिम्ब, मन को लुभा रहे थे। और इसी मनोरम दृश्य में तुम मेरे बगल में, मेरे कांधे पर सर रखे गंगा-जल से खेल रही थी।
श्री, भू, कीर्ति, इला, लीला, कांति, विद्या, विमला, उत्कर्शिनी, ज्ञान, क्रिया, योग, प्रहवि, सत्य, इसना और अनुग्रह। ये सोलहों कलाएं सिर्फ चंद्रमा में ही नहीं बल्कि तुममे भी विद्यमान थीं। चंद्रमा ने मानो अपनी सोलहों कलाओं को तुम्हें उपहार स्वरुप दिया हो। वो कमर तक काले बाल तुम्हारे, अगर खोल दो तो ये पूर्णिमा का चाँद भी कहीं खो जाए उनमें। वो ख़ूबसूरत हिरनी जैसी आँखें और उनमें हल्की-सी कजरे की धार। चार चाँद लगा रहे थे तुम्हारी खूबसूरती पर। अब भी याद है मुझे वो मधुर पल जब तुम काँधे से सर उठा कर मुझसे बात करके मुस्कुराती यूँ लगता की इससे अच्छा और कोई दृश्य ही नहीं दुनिया में। मैं तुम्हारे चेहरे की मासूमियत को अपने लब्ज़ों में ढालने का प्रयास करता। मेरे मासूम से इस असफल प्रयास पर जब तुम हँसती तो तुम्हारे कान के बाले भी मेरे मन की तरह पुलकित हो उठते। वो पल जब तुम सारी दुनिया भूल कर बस मेरी ही हुई बैठी थी उस पल को मैं कभी नहीं भूल सकूँगा। तुम्हारी उन मधुर बातों ने मेरे मन की विरह-अग्नि को बिल्कुल शान्त कर दी। मेरे मन में मानो प्यार का सैलाब उमड़ आया। जैसे गंगा की अविरल धारा मेरे सामने बह रही थी ठीक वैसी ही अविरल प्रेम की धारा मेरे मन में भी बहने लगी। जैसे पूर्णिमा का वो चाँद पुरे जग को शीतलता दे रहा था ठीक वैसे ही वर्षों से विरह-अग्नि में जले मेरे मन को शीतलता दी तुम्हारी उन प्रेम-पूर्ण बातों ने।तुम उठी ये कह कर कि-“अब बिरहा-अग्नि में जलने की जरुरत नहीं। मैंने ये निर्णय कर लिया है कि अब हम एक होंगें।” मैं भी उठा तुमने आलिंगन करना चाहा।
मेरी आँख खुल गयी मैं अपने बिस्तर पर लेटा मुस्कुरा रहा था।बड़ी मुश्किल से समझ पाया की ये एक स्वप्न था।
एक स्वप्न तुम्हारे साथ का।
-अनुपम राय’कौशिक’

Language: Hindi
Tag: लेख
366 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
23/110.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/110.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*जागा भारत चल पड़ा, स्वाभिमान की ओर (कुंडलिया)*
*जागा भारत चल पड़ा, स्वाभिमान की ओर (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
सैदखन यी मन उदास रहैय...
सैदखन यी मन उदास रहैय...
Ram Babu Mandal
लेखन-शब्द कहां पहुंचे तो कहां ठहरें,
लेखन-शब्द कहां पहुंचे तो कहां ठहरें,
manjula chauhan
सदा खुश रहो ये दुआ है मेरी
सदा खुश रहो ये दुआ है मेरी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
दो पल का मेला
दो पल का मेला
Harminder Kaur
💫समय की वेदना😥
💫समय की वेदना😥
SPK Sachin Lodhi
चलो कह भी दो अब जुबां की जुस्तजू ।
चलो कह भी दो अब जुबां की जुस्तजू ।
शेखर सिंह
देह धरे का दण्ड यह,
देह धरे का दण्ड यह,
महेश चन्द्र त्रिपाठी
दिनकर/सूर्य
दिनकर/सूर्य
Vedha Singh
सावन बीत गया
सावन बीत गया
Suryakant Dwivedi
आकाश मेरे ऊपर
आकाश मेरे ऊपर
Shweta Soni
मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
हम गैरो से एकतरफा रिश्ता निभाते रहे #गजल
हम गैरो से एकतरफा रिश्ता निभाते रहे #गजल
Ravi singh bharati
काव्य में अलौकिकत्व
काव्य में अलौकिकत्व
कवि रमेशराज
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
जिंदगी गुज़र जाती हैं
जिंदगी गुज़र जाती हैं
Neeraj Agarwal
*
*"ममता"* पार्ट-3
Radhakishan R. Mundhra
विनती
विनती
Saraswati Bajpai
-- गुरु --
-- गुरु --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
Who is whose best friend
Who is whose best friend
Ankita Patel
हमारी मोहब्बत का अंजाम कुछ ऐसा हुआ
हमारी मोहब्बत का अंजाम कुछ ऐसा हुआ
Vishal babu (vishu)
आंख बंद करके जिसको देखना आ गया,
आंख बंद करके जिसको देखना आ गया,
Ashwini Jha
शिष्टाचार के दीवारों को जब लांघने की चेष्टा करते हैं ..तो दू
शिष्टाचार के दीवारों को जब लांघने की चेष्टा करते हैं ..तो दू
DrLakshman Jha Parimal
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
DR ARUN KUMAR SHASTRI
महज़ एक गुफ़्तगू से.,
महज़ एक गुफ़्तगू से.,
Shubham Pandey (S P)
ना समझ आया
ना समझ आया
Dinesh Kumar Gangwar
यारों का यार भगतसिंह
यारों का यार भगतसिंह
Shekhar Chandra Mitra
আজকের মানুষ
আজকের মানুষ
Ahtesham Ahmad
अनन्त तक चलना होगा...!!!!
अनन्त तक चलना होगा...!!!!
Jyoti Khari
Loading...