Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Jul 2016 · 6 min read

हवा का झोँका – (कहानी )

एक सत्य कथा पर आधारित जो आज भी जीवित हैं लेकिन आज के समय मे ऎसे व्यक्तित्व दुर्लभ मिलेंगे 1

हवा का झोँका – (कहानी )

सोचती हूँ कि लिखने से पहले तुम्हें कोई संबोधन दूँ- मगर क्या——-संबोधन तो शारीरिक रिश्ते को दिया जाता है वो भी उम्र के हिसाब से मगर जो अत्मा से बँधा हो रोम रोम मे बसा हो उसे क्या कहा जा सकता है——इसे भी शाय्द तुम नहीं समझोगे-क्यों कि इतने वर्षों बाद भी तुम्हें प्यार का मतलव समझ नहीं आया तुम प्यार को रिश्तों मे बांध कर जीना चाहते थे——शब्दों से पलोसना चाहते थे ——-वो प्यार ही क्या जो किसी के मन की भाषा को न पढ सके ——–खैर छोडो——-आज मै तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूँगी——क्यों कि मुझे सुबह से ही लग रहा था क आज तुम से जरूर बातें होंगी— बातें तो मै रोज़ तुम से करती हूँ——-अकेले मे ——–पर आज कुछ अलग सी कशिश थी—-फिर भी पहले काम निपटाने कम्पयूटर पर बैठ गयी—अचानक एक ब्लोग पर नज़र पडी—-दिल धक से रह गया———समझ गयी कि आज अजीब सी कशिश क्यों थी—–साँस दर साँस तुम्हारी सारी रचनायें पढ डाली———–मगर निराशा ही हुई——उनमे मुझ से— ज़िन्दगी से शिकवे शिकायतों के सिवा कुछ् भी नहीं था——मुझे अपने प्यार पर शक होने लगा——क्या ये उस इन्सान की रचनायें हैं जिसे मै प्यार करती थी मै जिस की कविता हुआ करती थी——–क्या मेरा रूप इतना दर्दनाक है——–नहीं नही———मैने तो बडे प्यार से तुम्हारी कविता को जीया है ——तुम ही नहीं समझ पाये ——-तुम केवल शब्द शिल्पी ही हो शब्दों को जीना नही जानते-

मैने सोचा था कि तुम मेरे जाने के बाद खुद ही संभल जाओगे –जैसे इला के जाने के बाद संभल गये थे——-तुम इला से भी तो बहुत प्यार करते थे–मगर जब तक वो तुम्हारी पत्नी थी——फिर दोनो के बीच क्या हुआ——-कि वो तुम से अलग हो गयी——–उसके बाद मै तुम्हें मिली——–तुम्हारे दर्द को बाँटते बाँटते—खुद मे ही बँट गयी——-लेकिन इतना जरूर समझ गयी थी कि जब हम रिश्तों मे बँध जाते हैं तो हमारी अपेक्षायें बढ जाती हैं—-और छोटी –छोटी बातें प्यार के बडे मायने भुला देती हैं- मैने तभी सोच लिया था कि मै अपने प्यार को कोई नाम नहीं दूँगी———

तुम ने कहा था कि मै तुम्हारी कविता हूँ———-तभी से मैने तुम्हारे लिखे एक एक शब्द को जीना शुरू कर दिया था—-तुम अक्सर आदर्शवादी और इन्सानियत से सराबोर कवितायें लिखा करते थे कर्तव्य बोध से ओतप्रोत् ——समाजिक जिम्मेदारियों के प्रति निष्ठा से भरपूर रचनायें जिन के लिये तुम्हें पुरस्कार मिला करते थे—-बस मै वैसी ही कविता बन कर जीना चाहती थी——–

मेरे सामने तुम्हारी कविता है—जिसकी पहली पँक्ति –तुम्हारा प्यार बस एक हवा का झौंका था—

अगर किसी चीज़ को महसूस किये बिना उसकी तुलना किसी से करोगे तो किसी के साथ भी न्याय नहीं कर पायोगे—मैने हवा के झोंकों को महसूस किया और उन मे भी तुम्हें पाया–तुमने उसे सिर्फ शब्द दिये मैने एहसास दिये—– और उसे से दिल से जीया भी—-बर्सों—जीवन सँध्या तक मगर आज भी मेरा प्यार वैसे ही है खुशी और उल्लास से भरपूर–

तुम जानते हो हवा सर्वत्र है—– शाश्वत है—मगर इसे् रोका नहीं जा सकता— इसे—बाँधा नहीं जा सकता—कैद नहीं किया जा सकता—और जब जब हम इसे बाँधने की कोशिश करते हैं ये झोंका बन कर निकल जाती है—-ये झोंके भी कभी मरते हुये जीव को ज़िन्दगी दे जाते है—–इनकी अहमियत ज्येष्ठ आषाढ की धूप मे तपते पेड पौधों और जीव जन्तुयों से पूछो—–जिन्को ये प्राण देता है—बिना किसी रिश्ते मे बन्धे निस्सवार्थ भाव से—फिर तुम ये क्यों भूल गये कि ये झोँका तुम्हारे जीवन मे तब आया था जब तुम्हें इसकि जरूरत थी—इला के गम से उबरने के लिये–जब तुम उस दर्द को सह नहीं पा रहे थे——–हवा कि तरह प्यार का एहसास भी शाश्वत है —-तब जब इसे आत्मा से महसूस किया जाये शब्दो नहीं—

तुम इस झोंके को जिस्म से बाँधना चाहते थे———- अपने अन्दर कैद कर लेना चाहते थे——कुछ शर्तों की दिवारें खडी कर देना चाहते थे——– मगर हवा को बाँधा नहीं जा सकता———तुम्हारी कविता स्वार्थी नहीं थी——-जैसे हवा केवल अपने लिये नहीं बहती —कविता का सौंदर्य दुनिया के लिये होता है मै केवल उसे कागज़ के पन्नो मे कैद नहीं होने देना चाहती थी इस लिये अपने कर्तव्य का भी मुझे बोध था मै केवल अपने लिये ही जीना नही चाहती थी——– मै उन हवा के झोंकों की तरह उन सब के लिये जीन चाहती थी जिनका वज़ूद मेरे साथ जुडा है

— आज मै तुम्हें बताऊँगी की मै कैसे आब् तक तुम से इतना प्यार करती रही हूँ एक पल भी कभी तुम्हें अपने से दूर नहीं पाया—जानते हो

जब भी खिडकी से कोई हवा का झौका आता है मै आँखें बँद कर लेती हूँ और महसूस करती हूँ कि ये झोंका तुम्हें छू कर आया है—–तुम्हारी साँसों की खुशबु साथ लया हैऔर मै भावविभोर हो जाती हूँ—–मेरे रोम रोम मे एक प्यारा सा एहसास होता है—-कभी कभी इस झोंके मे कवल मिट्टी की सोंधी सी खुशबू होती है मै जान जती हूँ आज तुम घर पे नहीं हो कई बार इसमे तुम्हारी बगीची के गुलाब की महक होती है—-मेरे होठों पर फूल सी मुस्कराह्ट खिल उठती है और अचानक मेरा हाथ अपने बालों पर चला जाता है जहाँ तुम अपने हाथ से इसे लगाया करते थे——फिर मुझे एह्सास होता कि तुम मेरे पास खडे हो—–तुम्हारा स्पर्श अपने कन्धे पर मेह्सूस करती——–इसी अनुभूति का आनन्द महसूस करने के लिये अपना हाथ चारपाई पर पडी अपनी माँ के माथे पर रख देती हूँ——-माँ की बँद आँखों मे भी मुझे सँतुश्टि और सुरक्षा का भाव दिखाई देता है——यही तो प्यार है——-जिसे हम एक जिस्म से बाँध दें तो वो अपनी महक खो देता है—–और अपँग भाई के चेहरे को सहलाती हूँ तो उसके चेहरे पर कुछ ऐसे भाव तैर उठते हैँ जो तुम्हारे होने से मेरे मन मे तैरते थे———सच कहूँ तो तुम से प्यार करके मैने जीना सीखा है———–मै तुम से शादी कर के इस प्यार के एहसास को खोना नहीं चाहती थी—तुम अपने माँ बाप के इकलौते बेटे थे वो कभी नहीं चाहते कि मै अपनी बिमार माँ और अपंग भाई का बोझ ले कर उनके घर आऊँ—–तुम्हें ले कर उनके भी कुछ सपने थे——–इला के जाने का गम अभी वो भूल नहीं पाये थे———इस लिये मै चुपचाप दूसरे शहर चली आयी थी बिना तुम्हें बताये——–हम दोनो को कोई हक नहीं था कि हम उन लोगों के सपनो की राख पर अपना महल बनायें जिन से इस दुनिया मे हमारा वज़ूद है फिर प्यार तो बाँटने से बढता है———हर दिन इन झोंकों के माध्यम से मै तुम्हारे साथ रहती हूँ———मैने शादी नहीं की क्यों कि मै अपने प्यार के साथ जीना चाहती हूँ———-सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे साथ———इसे किसी जिस्म से बाँधना नहीं चाहती ——मै तो तुम्हारे एक एक पल का हिसाब जानती हूँ—–क्यों कि मेरी रूह ने मन की आँखो से तुम्हें मह्सूस किया है

मै अब भी महसूस कर सकती हूँ कि मेरी मेल् पढ कर तुम्हारी आँखोँ मे फिर वही चमक लौट आयेगी——-और इस मेल मे तुम्हें अपनी कविता——जो कविता ना रह कर शिकायत का पुलन्दा बन गयी थी मिल जायेगी——-तुम्हारी आँखों मे आँसू का कतरा मुझे यहाँ भी दिखाई दे रहा है——–फिर तुम कई बार मेरी मेल पढोगे——बार बार—— मुझे छू कर आया हवा का एक झोंका तुम्हें प्यार की महक दे जायेगा—- आँख बंद करके देखो महसूस करो—–मै तुम्हारे आस पास मिलूँगी——-मेरा प्यार तुम्हारी आत्मा तक उतर जायेगा——–अब तुम्हारे चेहरे पर जो सकून होगा उसे भी देख रही हूँ मन की आँखों से—— बस यही प्यार है——–यही वो एहसास है जो अमर है शाश्वत है——इसके बाद तुम एक कविता लिखने बैठ जाओगे मुझे पता है कि कविता वही जीवित रहती है जिसे महसूस कर जी कर लिखा जाये——-ये अमर कविता होगी

लिख कर नहीं जीना तुम्हें जी कर लिखना है——–इन झोंकों को जी कर ——-देखना ये आज के पल हमारे प्यार के अमर पल बन जायेंगे——–चलो जीवन सँध्या मे इन पलों को रूह से जी लें—–जो कभी मरती नहीं है——-

देख तुम्हारा चेहरा केसे खिल उठा है जैसे मन से कोई बोझ उतर गया हो———घर जाने को बेताब ——-देखा ना इस हवा के झोंके को ——–बस यही हओ प्यार——–जीवन को हँसते हुये गाते हुये इस के हर पल को हर रंग को खुशी से जीना——

Language: Hindi
5 Comments · 747 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मात्र मौन
मात्र मौन
Dr.Pratibha Prakash
अभी और कभी
अभी और कभी
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
बड़बोले बढ़-बढ़ कहें, झूठी-सच्ची बात।
बड़बोले बढ़-बढ़ कहें, झूठी-सच्ची बात।
डॉ.सीमा अग्रवाल
रमेशराज की विरोधरस की मुक्तछंद कविताएँ—2.
रमेशराज की विरोधरस की मुक्तछंद कविताएँ—2.
कवि रमेशराज
आग लगाना सीखिए ,
आग लगाना सीखिए ,
manisha
मसला ये नहीं कि कोई कविता लिखूं ,
मसला ये नहीं कि कोई कविता लिखूं ,
Manju sagar
कसरत करते जाओ
कसरत करते जाओ
Harish Chandra Pande
दिये को रोशन बनाने में रात लग गई
दिये को रोशन बनाने में रात लग गई
कवि दीपक बवेजा
अफसाने
अफसाने
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
जिस समय से हमारा मन,
जिस समय से हमारा मन,
नेताम आर सी
*जिंदगी-नौका बिना पतवार है ( हिंदी गजल/गीतिका )*
*जिंदगी-नौका बिना पतवार है ( हिंदी गजल/गीतिका )*
Ravi Prakash
#गुस्ताख़ी_माफ़
#गुस्ताख़ी_माफ़
*Author प्रणय प्रभात*
जो धधक रहे हैं ,दिन - रात मेहनत की आग में
जो धधक रहे हैं ,दिन - रात मेहनत की आग में
Keshav kishor Kumar
हम लड़के हैं जनाब...
हम लड़के हैं जनाब...
पूर्वार्थ
आसान होते संवाद मेरे,
आसान होते संवाद मेरे,
Swara Kumari arya
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
"इन्तहा"
Dr. Kishan tandon kranti
अज्ञानी की कलम
अज्ञानी की कलम
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
!! कुछ दिन और !!
!! कुछ दिन और !!
Chunnu Lal Gupta
गायब हुआ तिरंगा
गायब हुआ तिरंगा
आर एस आघात
*वो मेरी जान, मुझे बहुत याद आती है(जेल से)*
*वो मेरी जान, मुझे बहुत याद आती है(जेल से)*
Dushyant Kumar
Few incomplete wishes💔
Few incomplete wishes💔
Vandana maurya
जब हम गरीब थे तो दिल अमीर था
जब हम गरीब थे तो दिल अमीर था "कश्यप"।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
ईश्वर का जाल और मनुष्य
ईश्वर का जाल और मनुष्य
Dr MusafiR BaithA
मनमर्जी की जिंदगी,
मनमर्जी की जिंदगी,
sushil sarna
2558.पूर्णिका
2558.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
💐प्रेम कौतुक-440💐
💐प्रेम कौतुक-440💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
यदि है कोई परे समय से तो वो तो केवल प्यार है
यदि है कोई परे समय से तो वो तो केवल प्यार है " रवि " समय की रफ्तार मेँ हर कोई गिरफ्तार है
Sahil Ahmad
होलिका दहन कथा
होलिका दहन कथा
विजय कुमार अग्रवाल
आप तो गुलाब है,कभी बबूल न बनिए
आप तो गुलाब है,कभी बबूल न बनिए
Ram Krishan Rastogi
Loading...