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3 Jul 2017 · 1 min read

उड़ान

मन उमंगो के आसमान में उड़ने लगा
राहे स्वयं राह दिखाने लगी
राते स्वयं रोशन होने लगी
जब से मिली हो तुम
जिंदगी स्वयं मुस्कराने लगी
मन कहता है
पहाड़ो की वादियों में ढलती शाम हो
शाम के झुरमुट में पेड़ो के लम्बे साये हो
नदी के कलकल संगीत में
बहती समीर हो,बहती समीर में
तुम्हारा लहराता आँचल हो
आकांषये यो बढ़ने लगी
जिंदगी स्वयं मुस्करानी लगी

डॉ सत्येन्द्र कुमार अग्रवाल

Language: Hindi
471 Views
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