Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jan 2017 · 2 min read

उस घर की बेटी

उस घर की बेटी

उस घर में मां नहीं है
पर———-
उस घर की बेटी
मां से कम भी नहीं है
भोर होते ही उठ जाती है
नन्हे नन्हे हाथों से रंगोली बनाती है
इक हाथ से आंसू पोंछती है आंखों के
और इक हाथ से चूल्हा जलाती है
कभी जल जाती है रोटी, तो रो देती है
और कभी गोल गप्पे सी फूला उसको
वो सबको दिखाती है
उस घर में मां नहीं है पर——-++
खुद से भी छोटे दो भाई है उसके
बिस्तर से जगाती हैं उनको
नहलाती है , फिर कपड़े पहनाती है
खुद पढने नहीं जाती पर
उनको स्कूल रोज ले जाती हैं
उस घर में———
चूल्हे का धूंआ आंखें जलाता है
सुबह शाम उसको खूब रुलाता है
पर वो फिर भी मुस्कुराती है
मां का हर फर्ज निभाती है
थक जाती है जब वो नन्ही जान
चुप तस्वीर के आगे मां के आ जाती है
शिकायत कुछ नहीं करती बस—–
कुछ देर रोती है, फिर मान जाती है
उस घर की बेटी——-
गुड़ियों से खेलने की उम्र में
दिन रात हालात से खेलती है
कभी ठीक न होने वाली बाप की खांसी को
दिन रात वो झेलती है
भाई जब भी बीमार पड़ जाता है
सिरहाने बैठ उसके रात भर
हाथ सर पर उसके फेरती है
उस घर की——
जिन आंखो ने अभी पूरा आसमां भी नहीं देखा
उन आंखों में अपनो के लिए सपने देखती है
नन्हे नन्हे हाथों से कपड़े सुखाती है
टूट जाता है बटन कोई तो टांका भी लगाती हैं
देखते ही गली में गुब्बारे वाला कोई
वो झट से बच्चा बन जाती है
पर—जाने क्या सोचती है और
अगले ही पल ओढ लेती है संजीदगी
जिम्मेदारियों की लपेट चद्दर तन पे
वो मां की भूमिका बखूबी निभाती है
उस घर की——-
शाम होते ही ओढ लेती है दुपट्टा सर पे
तुलसी के आगे दिया भी जलाती है
छोटी छोटी बातों में उसकी छलकती है ममता
वो बेटी पर भर में मां बन जाती है
उस घर में मां नहीं है , पर
उस घर की बेटी मां से कम भी नहीं है
वंदना मोदी गोयल

1 Like · 1 Comment · 3251 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
नयकी दुलहिन
नयकी दुलहिन
आनन्द मिश्र
"क्रियात्मकता के लिए"
Dr. Kishan tandon kranti
बड्ड  मन करैत अछि  सब सँ संवाद करू ,
बड्ड मन करैत अछि सब सँ संवाद करू ,
DrLakshman Jha Parimal
2693.*पूर्णिका*
2693.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
भगतसिंह
भगतसिंह
Shekhar Chandra Mitra
* नव जागरण *
* नव जागरण *
surenderpal vaidya
says wrong to wrong
says wrong to wrong
Satish Srijan
प्यारा बंधन प्रेम का
प्यारा बंधन प्रेम का
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
फूल मोंगरा
फूल मोंगरा
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
डॉ. राकेशगुप्त की साधारणीकरण सम्बन्धी मान्यताओं के आलोक में आत्मीयकरण
डॉ. राकेशगुप्त की साधारणीकरण सम्बन्धी मान्यताओं के आलोक में आत्मीयकरण
कवि रमेशराज
With Grit in your mind
With Grit in your mind
Dhriti Mishra
■ मुक्तक
■ मुक्तक
*Author प्रणय प्रभात*
#यदा_कदा_संवाद_मधुर, #छल_का_परिचायक।
#यदा_कदा_संवाद_मधुर, #छल_का_परिचायक।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
जय मातु! ब्रह्मचारिणी,
जय मातु! ब्रह्मचारिणी,
Neelam Sharma
बखान गुरु महिमा की,
बखान गुरु महिमा की,
Yogendra Chaturwedi
हम
हम
Ankit Kumar
बंसत पचंमी
बंसत पचंमी
Ritu Asooja
खूबसूरत है दुनियां _ आनंद इसका लेना है।
खूबसूरत है दुनियां _ आनंद इसका लेना है।
Rajesh vyas
* संस्कार *
* संस्कार *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
दोनों हाथों से दुआएं दीजिए
दोनों हाथों से दुआएं दीजिए
Harminder Kaur
"आज की रात "
Pushpraj Anant
*कहा चैत से फागुन ने, नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन (गीत)*
*कहा चैत से फागुन ने, नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन (गीत)*
Ravi Prakash
इतनी मिलती है तेरी सूरत से सूरत मेरी ‌
इतनी मिलती है तेरी सूरत से सूरत मेरी ‌
Phool gufran
मातृभाषा हिन्दी
मातृभाषा हिन्दी
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
इससे ज़्यादा
इससे ज़्यादा
Dr fauzia Naseem shad
मान देने से मान मिले, अपमान से मिले अपमान।
मान देने से मान मिले, अपमान से मिले अपमान।
पूर्वार्थ
वापस लौट आते हैं मेरे कदम
वापस लौट आते हैं मेरे कदम
gurudeenverma198
मेरा लेख
मेरा लेख
Ankita Patel
संपूर्ण कर्म प्रकृति के गुणों के द्वारा किये जाते हैं तथापि
संपूर्ण कर्म प्रकृति के गुणों के द्वारा किये जाते हैं तथापि
Raju Gajbhiye
रविदासाय विद् महे, काशी बासाय धी महि।
रविदासाय विद् महे, काशी बासाय धी महि।
दुष्यन्त 'बाबा'
Loading...