उतरा दिखे गुरूर …..
Dohe
कॉलर नही कमीज में,पेंट नही है जेब
नँगा होने तक रचो,कोई नया फरेब
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उम्मीदों के दौर में ,तुम भी पालो ख़्वाब
कैशलेस हो खोपड़ी,’बाबा छाप’खिजाब
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पंछी बैठे छाँव में,उतरा दिखे गुरूर
आसमान ऊंचाइयां,कतरे पँखो दूर
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साल नया है आ रहा,हो न विषम विकराल
संयम उर्वर खेत में, बीज-व्यथा मत डाल
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घटते-घटते घट गया ,पानी भरा तलाब
तनिक ओस की चाह में ,चाटो अपने ख्वाब
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मानवता की आड़ ले ,दानव की है चीख
आज खाय भर-पेट तू ,कल को मागो भीख
आज खाय भर पेट हैं ,कल को मागे भीख
भाई तेरे राज में ,इतनी मिलती सीख
सुशील यादव