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7 Jun 2017 · 1 min read

इल्तजा

ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है
रंज करना बुज़दिलों का काम है

चल पड़ो मत बीतने दो ये सहर
ढ़ल गई तो शाम ही फिर शाम है

ढ़ो रहे हैं ज़िंदगी को बोझ सा
हाय पी कर देखिए क्या जाम है

बिक रहा है आदमी चारों तरफ
आप कहिए आप का क्या दाम है

मन लखनवी

1 Like · 2 Comments · 246 Views
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