इक दीप मुहब्बत का तुम फिर से जला जाओ
वज़्न- ?
1121/1222/1221/1222
ग़ज़ल
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मेहमान मिरे दिल के, मुझे छोड़ के न जाओ
बांहें ये बुलाती हैं,——- सीने से लगा जाओ
अश्कों के समंदर में,——हम डूब ही जाएंगे
मेरे जीवन की नैया को अब पार लगा जाओ
मेरे दिन भी अंधेरे है, —-ये रात भी काली है
इक दीप मुहब्बत का,तुम फिर से जला जाओ
इस ग़म की आंधी में, खाबों के महल गिरते
हम मर ही जाएंगे, —तुम आके बचा जाओ
उल्फ़त के गुलशन का,– तू फूल निराला है
बन करके खुश्बू सनम, सांसों में समा जाओ
उम्मीद की शम्मा को, –ऐसे न बुझाओ तुम
जो लगी दिल में, आ कर के बुझा जाओ
तुम खूने जिग़र बनकर,नस-नस में समाए हो
तड़पाओ न अब”प्रीतम”बस दर्श दिखा जाओ
प्रीतम राठौर भिनगई
श्रावस्ती (उ०प्र०)