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21 Jul 2017 · 1 min read

“इंसानियत” मुक्तक

इंसानियत
******
पहन कर बैर का जामा बढ़ाते हसरतें क्यों हो?
पढ़ा कर पाठ मज़हब का उठाते ज़हमतें क्यों हो?
रहीमा राम बन जाए मुहब्बत का सबक सीखें
मिला कर ज़हर साँसों में दिखाते नफ़रतें क्यों हो?

डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
संपादिका साहित्य धरोहर
महमूरगंज वाराणसी(मो.-9839664017)

Language: Hindi
1 Like · 230 Views
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