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13 Sep 2017 · 1 min read

नूर भर दिया

बह्र-मज़ारे अख़रव मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़
रुक्न-मफऊल फाइलात मुफाईलु फाइलुन

ग़ज़ल
तुमने ही ज़िंदगी में मेरी नूर भर दिया।
ऐसा तराशा मुझको कुहीनूर कर दिया।।

तन्हा भटक रहा था मेरा हाथ थामकर।
तन्हाइयों को मेरी यूं काफूर कर दिया।।

कर दी है तुमने दिल में मुहब्बत की बारिसें।
बंजर ज़मीं को आपने ज़ागीर कर दिया।।

बीरान सी हवेली था किरदार ये मेरा।
इक ताजमह् ल सा इसे तामीर कर दिया।।

तुम जामवंत हो मेरे जीवन के राह में।
मुझको मिलाया मुझसे महावीर कर दिया।।

मेरी क़लम बे रंग औ बेज़ान थी पड़ी।
दी तुमने धार इसको शमशीर कर दिया।।

लफ़्जों में था बॅटा नहीं थे मेरे मायने।
तुमने ही जोड़कर मुझे तहरीर कर दिया।।

तेरे करम का रब मैं करू – कैसे शुक्रिया।
देखा था ख्वाब जो, उसे ताबीर कर दिया।।

कमजोर था “अनीश” मिला ऐसा हौसला।
इक कच्चा धागा था इसे जंजीर कर दिया।।
@nish shah

श्री अरविंद सिंह राजपूत को सादर समर्पित

1 Like · 502 Views
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