आदमी
बीत गए वो लम्हे
अतीत के पन्नो पर
कुछ छाप छोड़ गए
कुछ मीठी यादे
कुछ रिश्ते तोड़ गए
यकीं होना किसी के होने का
यह अनुभव ज़रा कठिन है
इंसान था अकेला जन्म से
फिर क्यों किसी का साथ चाहिए
समझ न पाना रिश्तो के धागों को
न महसूस कर पाएंगे लोग
उसके तार बहुत महीन है
हम चाहते है कि न जुदा हो
हमसफ़र किसी का
रिश्ते बनाना तोडना काम आदमी का
क्यों न रहे हम अज़नबी की तरह
जब हर ओर दुश्मन
बना आदमी , आदमी का