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18 Sep 2017 · 1 min read

आँखों में क्यूँ नमी रहे

ग़र चाँदनी खिली रहे
तो दूर तीरग़ी रहे

अरमान सारे ख़ाक़ हैं
बस दिल में बेबसी रहे

खुशियाँ मिली है सारी तो
आँखों में क्यों नमी रहे

रूठो न यार तुम मुझसे
ये दोस्ती बनी रहे

आखों से जाम छलका दे
फिर दूर तिश्नग़ी रहे

जब तक रहे तू सामने
ये सांस भी रुकी रहे

दामन छुड़ा न मुझसे तू
कुछ देर और खड़ी रहे

मँहगाई ने रुला दिया
अब ये न मुफ़लिसी रहे

अब हम जहाँ मिलें सनम
वो शाम क्यूँ ढली रहे

तेरे बग़ैर होठों पर
फ़रियाद इक दबी रहे

“प्रीतम” न प्यार हो जुदा
सबको सनम मिली रहे

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
2212 1212

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