आँखों में क्यूँ नमी रहे
ग़र चाँदनी खिली रहे
तो दूर तीरग़ी रहे
अरमान सारे ख़ाक़ हैं
बस दिल में बेबसी रहे
खुशियाँ मिली है सारी तो
आँखों में क्यों नमी रहे
रूठो न यार तुम मुझसे
ये दोस्ती बनी रहे
आखों से जाम छलका दे
फिर दूर तिश्नग़ी रहे
जब तक रहे तू सामने
ये सांस भी रुकी रहे
दामन छुड़ा न मुझसे तू
कुछ देर और खड़ी रहे
मँहगाई ने रुला दिया
अब ये न मुफ़लिसी रहे
अब हम जहाँ मिलें सनम
वो शाम क्यूँ ढली रहे
तेरे बग़ैर होठों पर
फ़रियाद इक दबी रहे
“प्रीतम” न प्यार हो जुदा
सबको सनम मिली रहे
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
2212 1212