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18 Aug 2017 · 1 min read

” ——————————————–अर्थ समझ गये गहरे ” !!

गहरे जल में बिम्ब उभरते , अनजाने से गहरे !
दर्पण दिखलाता है हमको , काहे अक्स रूपहरे !!

गहराई से डर लगता है , लहरों से हम खेलें !
समय ने बैठाये रखे हैं , जगह जगह पर पहरे !!

घाट घाट का पानी पीकर , हो गए लोग सयाने !
दुनिया को देते रहते हैं , घाव बड़े औ गहरे !!

आस लगाकर दीपक छोड़ा , बाती देख रही हूं !
तूफानी लहरें टकराये , जोत जोश की फहरे !!

तट पर लहराईं खुशबू है , नहीं मोगरा वश में !
अधरों पर मुस्कान सजी है , भूल गये ककहरे !!

बिन काजर अँखियाँ कजरारी , तुमको कैद किया है !
टिकी हुई नज़रें दुनिया की , सपने सभी चितहरे !!

मौन घाट है मौनी लहरें , मौनी बहती धारा !
जहां मौन से नाता जोड़ा , अर्थ समझ गये गहरे !!

बृज व्यास

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