” ————————————– अरमानों का खेला ” !!
थोड़ा सा विश्राम दूं तन को , मन भी लगे थकेला !
काटे से कटते ना दिन है , समय बड़ा अलबेला !!
सज़ धज कर श्रृंगार किया है , बाट जोहती आंखें !
अंतर्मन की चाहत को है , तुमने पल पल ठेला !!
संदेशों से पा जाते हैं , ऊर्जा नई नई सी !
तुम आये तो सज़ जाता है , अरमानों का खेला !!
ताने खूब सुना करते हैं , आँचल कोरा कोरा !
लक्ष्य तुम्हारा लिये सामने , कठिन लगे है बेला !!
सेवा भाव बन्धा है पल्लू , मोल कोइ ना जाने !
कमजोरों को खाने पढ़ते , यहां सदा ही ढेला !!
शिक्षा दीक्षा गांठ बन्धी है , यही काम बस आवे !
चतुर जनों के पास भीड़ है , हम तो रहे अकेला !!
अल्हड़ता खोयी खोयी है , गुमसुम है खुशहाली !
यहां प्रतीक्षित अभी लगे है , परिवर्तन का रेला !!
मुस्कानों के तीर जगाकर , अपनी पीर भुला दूं !
तुम आये तो लग जायेगा , उम्मीदों का मेला !!