अभी तो कोई पराया नज़र न आया मुझे
ग़ज़ल
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किसी ने ऐसे नज़र से है गिराया मुझे
कि हर घड़ी तो सताता ग़मों का साया मुझे
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वो क़समे-वादे तुम्हारे कहां गये हैं सनम
ख़ता हुई है क्या मुझसे जो यूँ भुलाया मुझे
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भुला दूँ कैसे ऐ माँ तेरी उस मुहब्बत को
जो खुद तो भूखी ही रह कर सदा खिलाया मुझे
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मैं छोड़ कैसे दूँ तन्हा उसे ज़माने में
पकड़ जो उँगली मेरी चलना है सिखाया मुझे
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करूँ मैं किस से अदावत ज़माने में लोगों
अभी तो कोई पराया नज़र न आया मुझे
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किसी आँखों का तारा हूँ ऐ सितमग़र सुन
समझ के खाक़ जमीं का न जो उठाया मुझे
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दिया हमेशा सनम तुमको बाहों का बिस्तर
ये प्यार कैसा कि काँटों पे है सुलाया मुझे
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न जाने कौन सी मुझसे ख़ता हुई “प्रीतम”
किया था वादा हँसाने का पर रुलाया मुझे
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
13/09/2017
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1212 1122 1212 22
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