अब दिया प्यार का हर घर में जलाया जाए
ग़ज़ल
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अब शज़र ऐसा वतन में तो लगाया जाए
प्यार के साये में घर अपना बनाया जाए
तीरग़ी ग़म की जो अब तक के सहे हैं उनको
अब दिया प्यार का हर घर में जलाया जाए
मोतबर प्यार की खुश्बू से हो सारी दुनिया
फूल ऐसा ही कोई अब तो खिलाया जाए
ज़ज़्ब कर अपनी निगाहों में ये आँसू यारों
सूखे फूलों को चलो फिर से खिलाया जाए
इनकी फितरत तो है डसने की डसेंगे सबको
दूध साँपों को भला कैसे पिलाया जाए
फल को देखे ही बिना राय न क़ायम करना
हर शज़र गंदा है ऐसा न बताया जाए
अब अमीरी या ग़रीबी को न देखो “प्रीतम”
ये है तहज़ीब गले सबको लगाया जाए
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
08/09/2017
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