Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Oct 2017 · 2 min read

“अपनी परंपरा और पीढ़ी को नजरंदाज कर रहे आज के युवा”

आज हम जिस समाज में रहते हैं उसे पढ़े लिखे सभ्य समाज की उपमा दी जाती है। हमारा हर काम सोच समझकर पूरे निरीक्षण परीक्षण के साथ सम्पन्न होता है। हम अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं। इन सब अच्छी बातों के बीच आज हम बहुत कुछ खोते जा रहे है, वह है संस्कार, अपनी परम्पराए रहन सहन का वह तरीका जिसमे एक परिवार में कई रिस्ते देखने को मिलते थे। आज का परिवार पति-पत्नी और बच्चों तक ही सीमित होकर रह गया है, परिवार में अच्छे बुरे की पहचान कराने वाली बूढ़ी दादी और दादा की कोई जगह नही बची है, बूढ़ी दादी जो स्वयं चलने को मजबूर होते हुए अपने पौत्र को गोदी में लेकर सौ बलाए लेती है आज उसी को युवा पीढ़ी नजरअंदाज कर रही है क्या यही हमारी प्रगति है? क्या यही हमारी नई सभ्यता है? इसी पर हम गर्व करते हैं एक बार हमें सोचना चाहिए यह कैसी प्रगति है हमारी, जो हमे अपनो से दूर करती जा रही है। हमारे पास सुख सुविधाओं के सभी अत्याधुनिक साधन होने के बाद भी नींद की गोलियां खानी पड़ रही है क्यों ? क्योंकि आज हमारे सिर पर स्नेह भरा वह मां का हाथ नहीं है और जिसके पूर्ण जिम्मेदार स्वयं हम हैं ।हमने अपने जीवन को व्यस्त नहीं वास्तव में अस्त व्यस्त बना लिया है हम अपनो को छोड़कर भौतिक सुखों के पीछे भाग रहे है जो सुख तो दे सकता है लेकिन सुकून कभी नहीं दे सकता।

आज की नई युवा पीढ़ी एकल परिवार को ज्यादा पसंद करती है आखिर क्यों? ऐसा क्या दिया है एकल परिवार ने। जहां तक मेरा निजी मानना है आज की युवा पीढ़ी अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है उसे विलासिता का जीवन अच्छा लगता है अपनी निजी जिंदगी में किसी की दखलंदाजी उसे बर्दास्त नही, और यहीं सोच उसे आगे चलकर एक दिन एकाकी जीवन बिताने के लिए मजबूर कर देती है और फिर आरम्भ होता है बीमारियों का आना जाना जिसमे सबसे प्रमुख है तनाव जिसे हम टेंसन नाम से भी जानते हैं और यह जीवन पर्यंत चलने वाली बीमारी इंसान को तिल तिल कर मारती रहती है वह अपने मन की ब्यथा किसी के साथ साझा भी नही कर पाता क्योंकि साझा करने वाले सभी व्यक्ति उसने न जाने कब के अपने जीवन से दूर कर दिए होते हैं। व्यक्ति को तब समझ में आता है कि परिवार का हमारे जीवन मे क्या महत्व होता है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। और वह उस स्थिति में पहुंच चुका होता है जहाँ से उसके बस का कुछ नहीं रहता। इसलिए समय रहते हमे सचेत होना चाहिए ईश्वर के स्वरूप अपने माता पिता का जितना संरक्षण मिल सके उसे प्राप्त करना चाहिए क्योंकि वह अगर एक बार हमसे दूर हो गए फिर तो दुनिया की ताकत हमे उनसे नहीं मिला सकती।

Language: Hindi
Tag: लेख
470 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
राहों में
राहों में
हिमांशु Kulshrestha
" मुझे सहने दो "
Aarti sirsat
आज की प्रस्तुति - भाग #1
आज की प्रस्तुति - भाग #1
Rajeev Dutta
23/48.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/48.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
घर के राजदुलारे युवा।
घर के राजदुलारे युवा।
Kuldeep mishra (KD)
..सुप्रभात
..सुप्रभात
आर.एस. 'प्रीतम'
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की याद में लिखी गई एक कविता
साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की याद में लिखी गई एक कविता "ओमप्रकाश"
Dr. Narendra Valmiki
मर्दुम-बेज़ारी
मर्दुम-बेज़ारी
Shyam Sundar Subramanian
मोमबत्ती जब है जलती
मोमबत्ती जब है जलती
Buddha Prakash
😢 अच्छे दिन....?
😢 अच्छे दिन....?
*Author प्रणय प्रभात*
सम्मान
सम्मान
Paras Nath Jha
चंद अशआर -ग़ज़ल
चंद अशआर -ग़ज़ल
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
बच्चा बूढ़ा हो गया , यौवन पीछे छोड़ (कुंडलिया )
बच्चा बूढ़ा हो गया , यौवन पीछे छोड़ (कुंडलिया )
Ravi Prakash
"रहबर"
Dr. Kishan tandon kranti
व्यस्तता
व्यस्तता
Surya Barman
तुम्हारा दीद हो जाए,तो मेरी ईद हो जाए
तुम्हारा दीद हो जाए,तो मेरी ईद हो जाए
Ram Krishan Rastogi
इन रास्तों को मंजूर था ये सफर मेरा
इन रास्तों को मंजूर था ये सफर मेरा
'अशांत' शेखर
💐Prodigy Love-14💐
💐Prodigy Love-14💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
वेलेंटाइन डे समन्दर के बीच और प्यार करने की खोज के स्थान को
वेलेंटाइन डे समन्दर के बीच और प्यार करने की खोज के स्थान को
Rj Anand Prajapati
बढ़ता उम्र घटता आयु
बढ़ता उम्र घटता आयु
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
!! मैं उसको ढूंढ रहा हूँ !!
!! मैं उसको ढूंढ रहा हूँ !!
Chunnu Lal Gupta
मुक्तक
मुक्तक
डॉक्टर रागिनी
वो तुम्हीं तो हो
वो तुम्हीं तो हो
Dr fauzia Naseem shad
वाह नेता जी!
वाह नेता जी!
Sanjay ' शून्य'
कितना मुश्किल है केवल जीना ही ..
कितना मुश्किल है केवल जीना ही ..
Vivek Mishra
जानता हूं
जानता हूं
Er. Sanjay Shrivastava
ट्रेन का रोमांचित सफर........एक पहली यात्रा
ट्रेन का रोमांचित सफर........एक पहली यात्रा
Neeraj Agarwal
रसों में रस बनारस है !
रसों में रस बनारस है !
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
आईने में देखकर खुद पर इतराते हैं लोग...
आईने में देखकर खुद पर इतराते हैं लोग...
Nitesh Kumar Srivastava
Loading...