Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Aug 2016 · 6 min read

अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग ७

अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग ७

गतांक से से …………

सोहित और तुलसी की अनकही प्रेम कहानी में लुका छुपी चलती रही, सर्वे आते रहे और जाते रहे लेकिन दोनों में से किसी ने भी अपने जज्बातों को एक दूसरे के सामने जाहिर नहीं किया | इस बीच तुलसी की ज़िन्दगी में एक सिरफिरे ने बहुत उथल पुथल मचा के रखी हुई थी | लगभग हर दूसरे दिन वो तुलसी के सामने इमोशनल ड्रामा करने पहुँच जाता था लेकिन तुलसी के मन में तो सोहित की तस्वीर बसी हुई थी |

बीतते समय के साथ सोहित को दुबई से एक नौकरी का ऑफर आया और वो यहाँ से तुलसी की यादों को दिल में संजोये हुए चला गया | लेकिन वो कभी तुलसी को भुला नहीं पाया | उधर तुलसी ने भी सोहित को भुलाया तो नहीं लेकिन उस सिरफिरे को अपना लिया लेकिन सिर्फ एक दोस्त के रूप में | वो तुलसी को लाख कहता तुलसी मैं तुमसे प्यार करता हूँ, लेकिन तुलसी कभी उसको दोस्ती की हद पार नहीं करने देती | जब वो ज्यादा ड्रामा करता तो उससे बात करने से भी इनकार कर देती | पहले पहल तो सबकुछ ठीक रहा | लेकिन कुछ समय बाद वो बात बात पर तुलसी से झगड़ने लगा और अपशब्दों का भी प्रयोग करने लगा | लेकिन तुलसी इतनी सहृदय थी की उसको कभी इनकार भी नहीं कर पाती थी |

सोहित भी दुबई जाकर अपनी नौकरी में व्यस्त हो गया | वो वहां एक ऑटोमोबाइल्स कंपनी में मार्केटिंग डिवीज़न में सहायक मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट पर नियुक्त हुआ था | सैलरी भी ठीकठाक ही थी | तुलसी को लेकर सोहित अभी भी कश्मकश में था | वो हर शाम को सोचता आज कॉल करता हूँ, नंबर टाइप भी करता मगर फिर उसकी हिम्मत जवाब दे जाती और वो फ़ोन रख देता | इस कश्मकश में ३ महीने गुजर गए | आखिरकार एक रविवार को सोहित ने तुलसी को फ़ोन लगा ही दिया :

ट्रिन ट्रिन .. ट्रिन ट्रिन …… ट्रिन ट्रिन …

(जैसे जैसे घंटी लम्बी होती जा रही थी सोहित के दिल की धडकनें भी बढती जा रही थी)

ट्रिन ट्रिन ….ट्रिन ट्रिन

फ़ोन उठा –

तुलसी : हेल्लो !

(सोहित ने अपनी बढ़ी हुई धडकनों को काबू में करते हुए हेल्लो कहा )

सोहित : हेल्लो तुलसी ! कैसी हो ?

तुलसी : नमस्ते सर, मैं तो ठीक हूँ | आप कैसे हैं ? दो तीन महीनो से आप आये ही नहीं ?

सोहित : नमस्ते तुलसी | मैं तो पहले की ही तरह बहुत अच्छा हूँ | मैं वहां से दुबई शिफ्ट हो गया हूँ | तीन महीने हो गए मुझे यहाँ आये हुए | तुम्हारा काम कैसा चल रहा है ?

तुलसी : सब अच्छा है सर, एक दिन आपके एक साथी सर्वे पर आये थे और मुझसे आपके बारे में पूछ रहे थे | आपने उनसे कुछ कहा था क्या ?

सोहित : नहीं तो | मैंने सामान्य तौर पर ही आपकी टीम का नंबर बताया था और कहा था कि आपकी टीम बहुत अच्छा काम करती है और बहुत ही लगनशील टीम है |

तुलसी : ओके , फिर पता नहीं क्यों वो आपके बारे में मुझसे पूछ रहा था और बार बार घूर कर देख रहा था |

सोहित : पता नहीं उसने ऐसा क्यों किया ? अगर फिर कुछ बात हो तो उसको मुझसे डायरेक्ट बात करने को बोलियेगा, उसके पास मेरा नंबर ज़रूर होगा |

और इस प्रकार सोहित और तुलसी का पहला व्यक्तिगत वार्तालाप ख़त्म हुआ |

तुलसी से बात करने के दौरान सोहित बिलकुल भी सामान्य नहीं था | पूरे समय उसकी धड़कन बढ़ी रही |

(खुद से ही “ हे भगवान, कितनी हिम्मत लगती है एक लड़की से बात करने में, अभी तो कुछ कहा नहीं मैंने तब ये हाल है, और जब मैं अपने दिल की बात कहूँगा तो क्या होगा ? लोग पता नहीं कैसे दो-दो, तीन-तीन लड़कियों से अपने दिल की बात कह लेते हैं और उनको डर भी नहीं लगता |)

सोहित खुश था कम से कम आज फ़ोन पर बात तो हुई | उधर तुलसी भी खुद से ही बड़बड़ा रही थी ( कमीने ने आज पहली बार फ़ोन किया फिर भी काम की ही बातें करता रहा, अपनी तो बात की ही नहीं | मुझे देख कर तो कितना मुसकुराता था और यहाँ पर तो कितनी बातें करता था | और मुझे बोलता रहता था कितना हंसती हो, मेरा तो मन कर रहा था दांत ही तोड़ दूँ इसके |) तुलसी की ये झुंझलाहट वाजिब भी थी, आखिर प्यार जो करने लगी थी सोहित से, लेकिन एक लड़की होने की मर्यादाओं में बंधी हुई थी तो खुद आगे बढ़कर कैसे कहती, “सोहित, मैं तुमसे प्यार करती हूँ |”

सोहित ने अब हर रविवार को तुलसी को फ़ोन करना शुरू कर दिया | २ -३ हफ्ते तो सामान्य ही बातचीत की, लेकिन उसके बाद एक रविवार को उसने खुद को तैयार किया अपने दिल की बात कहने के लिए और तुलसी को फ़ोन लगाया –

ट्रिन ट्रिन … ट्रिन ट्रिन …..ट्रिन ट्रिन …

हर घंटी के साथ पहली काल की तरह दिल की धडकनें बढती हुई महसूस हो रही थी सोहित को | तुलसी ने फ़ोन उठाया –

तुलसी : हेल्लो सर, नमस्ते | कैसे हैं ?

सोहित : मैं हमेशा की तरह बहुत अच्छा हूँ | तुम सुनाओ कैसी हो ? क्या हो रहा है ?

तुलसी : सर कुछ खास नहीं, हम भी अच्छे हैं |

सोहित : बस अच्छी ही हो, हम तो सोच रहे थे कि तुम बहुत अच्छी हो |

तुलसी : हाँ बहुत अच्छी हूँ \ J J J J

सोहित : हाहाहा | वो तो हमें मालूम ही है कि तुम बहुत अच्छी हो | सुनो, मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी |

तुलसी समझ तो गयी थी लेकिन अनजान बनते हुए –

तुलसी : बात कर तो रहे हो आप !

सोहित : कुछ और बात कहनी थी |

तुलसी : कहो |

सोहित : अगर बुरा लगे तो नाराज मत होना | मैं तुम्हे बहुत पसंद करता हूँ , तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो |

तुलसी : अच्छे तो आप भी मुझे लगते हो | हमेशा मुस्कुराते रहते हो |

सोहित : मुझे तुमसे बात करना बहुत पसंद है, तुम्हारी हंसी बहुत प्यारी लगती है और जिस तरह से तुम बोलती हो बहुत अच्छा लगता है |

तुलसी : आप भी तो अच्छा बोलते हो और कितनी अच्छी तरह से बात करते हो और बात अच्छी तरह से समझाते हो | और आपकी मुस्कान भी तो बहुत अच्छी है | आपको कभी उदास देखा ही नहीं | सफ़ेद मोतियों से चमकते दांत हमेशा चमकते रहते हैं |

सोहित : तुलसी………. मैं तुमसे बहुत समय से प्यार करता हूँ, जब मैं वहां आता था तभी से तुमको चाहता हूँ | आई लव यू तुलसी | क्या तुम भी मुझसे प्यार करती हो ?

तुलसी : (मन ही मन में बोली हाँ करती तो हूँ सर लेकिन स्वीकार नहीं कर सकती, कुछ मजबूरियां है मेरी, मैं घरवालों के खिलाफ नहीं जा सकती ) तो आपने तब क्यों नहीं कहा ? अब इतनी दूर जाकर कह रहे हो | मेरे सामने कहते तो मैं आपको कुछ बताती भी | आप भी मुझे अच्छे लगते हैं सर, लेकिन मेरी ज़िन्दगी में पहले से कोई है |

सोहित : सच में कोई है या ऐसे ही मुझसे पीछा छुडाने के लिए कह रही हो ?

तुलसी : सच में मेरा एक दोस्त है |

सोहित : दोस्त ही है न, तुम उससे प्यार तो नहीं करती न ? मैं तुमसे प्यार करता हूँ तुलसी |

तुलसी : मैं प्यार नहीं करना चाहती सर | वैसे भी आपका और मेरा मिलना संभव भी नहीं है |

सोहित : क्यों नहीं है, मेरे घरवाले कभी मना नहीं करेंगे | तुम्हारे घरवाले भी मुझसे मिलने के बाद इनकार नहीं कर पायेंगे | मैं मना लूँगा उनको तुलसी, बस तुम एक बार हाँ तो कहो ?

तुलसी : आपने पहले क्यों नहीं कहा जब यहाँ थे तो ?

सोहित : मुझे तुम्हारे इनकार से डर लगता था | अगर उस समय अगर तुम इनकार कर देती तो मैं रोज तुम्हारा सामना नहीं कर पाता | और अगर तुम हमारी बात अपनी सहेलियों और सहकर्मियों को बताती तो वो मेरा मजाक उड़ाते | बस इसी डर से मैं तुमसे नहीं कह पाया तुलसी |

तुलसी : और अब डर नहीं है?

सोहित : तुम्हारे इन्कार का डर तो अब भी है लेकिन इनकार पर बार बार तुम्हारा सामना नहीं करना पड़ेगा | तुम हाँ कहती हो तो मैं अगले सन्डे को ही कनकपुर आ जाता हूँ, सिर्फ तुम्हारे लिए तुलसी |

तुलसी : थोडा समय दो मुझे | मैं सोच कर बताउंगी |

सोहित : तुम पूरा समय लो, और अच्छी तरह सोच समझकर निर्णय लो तुलसी, मैं तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ |

सोहित को अब तुलसी के जवाब का अगले रविवार तक इन्तजार करना था, पूरा सप्ताह कैसे गुजरेगा सोहित का ? तुलसी का क्या जवाब होगा? क्या तुलसी सोहित को भुलाकर उस सिरफिरे को हमेशा के लिए अपना लेगी ?

इन सब सवालों के जवाब के लिए आपको करना होगा अगले भाग का इन्तजार …….

क्रमशः

सन्दीप कुमार
०४.०८.२०१६

Language: Hindi
552 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
सैदखन यी मन उदास रहैय...
सैदखन यी मन उदास रहैय...
Ram Babu Mandal
2483.पूर्णिका
2483.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
मां शारदे कृपा बरसाओ
मां शारदे कृपा बरसाओ
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
● रूम-पार्टनर
● रूम-पार्टनर
*Author प्रणय प्रभात*
एक अच्छे मुख्यमंत्री में क्या गुण होने चाहिए ?
एक अच्छे मुख्यमंत्री में क्या गुण होने चाहिए ?
Vandna thakur
सुनो पहाड़ की.....!!! (भाग - ५)
सुनो पहाड़ की.....!!! (भाग - ५)
Kanchan Khanna
इंद्रवती
इंद्रवती
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
★फसल किसान की जान हिंदुस्तान की★
★फसल किसान की जान हिंदुस्तान की★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
सादगी मशहूर है हमारी,
सादगी मशहूर है हमारी,
Vishal babu (vishu)
भारत का सिपाही
भारत का सिपाही
आनन्द मिश्र
"जोड़ो"
Dr. Kishan tandon kranti
Being an ICSE aspirant
Being an ICSE aspirant
Sukoon
ईश्वर से ...
ईश्वर से ...
Sangeeta Beniwal
जो सबका हों जाए, वह हम नहीं
जो सबका हों जाए, वह हम नहीं
Chandra Kanta Shaw
खद्योत हैं
खद्योत हैं
Sanjay ' शून्य'
इतिहास
इतिहास
श्याम सिंह बिष्ट
आतंकवाद को जड़ से मिटा दो
आतंकवाद को जड़ से मिटा दो
gurudeenverma198
सोच समझ कर
सोच समझ कर
पूर्वार्थ
तुम मेरा हाल
तुम मेरा हाल
Dr fauzia Naseem shad
सत्यं शिवम सुंदरम!!
सत्यं शिवम सुंदरम!!
ओनिका सेतिया 'अनु '
करते प्रियजन जब विदा ,भर-भर आता नीर (कुंडलिया)*
करते प्रियजन जब विदा ,भर-भर आता नीर (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
तबीयत मचल गई
तबीयत मचल गई
Surinder blackpen
वसंत की बहार।
वसंत की बहार।
Anil Mishra Prahari
आ गए आसमाॅ॑ के परिंदे
आ गए आसमाॅ॑ के परिंदे
VINOD CHAUHAN
कविता -नैराश्य और मैं
कविता -नैराश्य और मैं
Dr Tabassum Jahan
बचपन-सा हो जाना / (नवगीत)
बचपन-सा हो जाना / (नवगीत)
ईश्वर दयाल गोस्वामी
हाइकु : रोहित वेमुला की ’बलिदान’ आत्महत्या पर / मुसाफ़िर बैठा
हाइकु : रोहित वेमुला की ’बलिदान’ आत्महत्या पर / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
ये कैसा घर है. . . .
ये कैसा घर है. . . .
sushil sarna
परिंदा हूं आसमां का
परिंदा हूं आसमां का
Praveen Sain
चुप्पी
चुप्पी
डी. के. निवातिया
Loading...