Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Jul 2016 · 4 min read

“अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग २ “

“अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग – २ ”
* * * * * * * * * * * * * * * * *

पूरे एक महीने का इन्तजार था। इस दौरान तुलसी से बात होना भी सम्भव नही था। सोहित गिन गिन कर दिन गुजार रहा था । ऐसा कोई पल नही था जब सोहित ने तुलसी को सोचा न हो । प्रेम नगर की उस गली से सोहित के मन में प्रेम के बीज अंकुरित होने का आभास हो रहा था । उधर तुलसी भी कुछ सोच रही थी शायद। वो खुद से ही बात करते हुए कह रही थी, ” कैसा पागल था वो और कैसे बस हँसता ही जा रहा था ।” सोहित ने तुलसी को आकर्षित किया था या नही लेकिन उसकी हँसी जरूर अपना काम कर गयी थी ।

आखिरकार वो दिन भी आ ही गया जिसका सोहित बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था । कनकपुर जाते हुए वो मोबाइल टीम का काम देख रहा था कि एक टीम के पास तुलसी भी बैठी दिखाई दे गयी । सोहित ने बात करने के उद्देश्य से कहा,” आप अभी तक फील्ड में नही गयी? काम कब शुरू करोगे जब अभी तक यहीं पर बैठी हो।” तुलसी थोड़ा सा घबराते हुए बोली, “सर, अभी चाची नही आयी है, हमारा काम करने का समय 8:30 से शुरू होता है ।”
सोहित,” ठीक है, मै बाद में आता हूँ तुम्हारे फील्ड में और रिपोर्ट शीट में भी तभी हस्ताक्षर करूंगा ।” ऐसा कहकर वो कनकपुर को निकल गया ।

आज हफ्ते का पहला ही दिन था जबकि प्रेम नगर की तरफ का कार्यक्रम बुधवार का था इस बार । सोहित, तुलसी से मिल तो चुका था सो वो वापस नही आया । वहीं सोहित के जाने के बाद चाची आयी तो तुलसी ने उनको भी खरी खरी सुना दी कि जल्दी आया करो। और वो दोनों भी काम करने निकल गये। अगले दिन सोहित तुलसी से नही मिल पाया, क्योंकि जब तक वो अपने कार्यक्रम के अनुसार काम खत्म करके वापस लौटा तब तक तुलसी और चाची अपना काम खत्म करके घर जा चुकी थी ।

आज बुधवार था और सोहित जानबूझकर जल्दी ही प्रेम नगर पहुंच गया, उसे दूर से आते देखकर ही तुलसी ने चाची से कहा, “आज फिर आ रहा है कमीना, उस दिन तो लौटकर आया नही।” पता नही ये तुलसी की झुंझलाहट थी या बेचैनी, कहना मुश्किल था। तब तक सोहित भी नजदीक आ गया, तुलसी की मुस्कुराहट ने उसका स्वागत किया । सामान्य अभिवादन के पश्चात सोहित ने उनकी रिपोर्ट देखी तो पाया अभी सिर्फ 15 घरों का ही सर्वे किया था । सोहित ने ज्यादा बात न करते हुए बाकी के काम करने के लिए निकल गया । वो दोनो भी काम में लग गयीं।

अभी वो काम खत्म ही करने वाली थीं कि सोहित फिर आ धमका । सोहित इस बार उनके कार्यक्षेत्र से सर्वे पूरा करके आया था । उसने दोनों से कुछ सवाल जवाब किये और अपनी रिपोर्ट भी उनकी रिपोर्ट से मिलाया । कहीं भी कुछ अलग नही था, उनका काम अच्छा था। सोहित को दोबारा आता देखकर तुलसी के मन में घबराहट होने लगी थी जिसे सोहित ने भाँप लिया था । “आप लोगों का काम अच्छा है ।”, सोहित ने कहा । ये सुनकर तुलसी का चेहरा खिल उठा । वो चहक कर बोली , ” सर, हम तो अच्छा ही काम करते हैं। ” सोहित भी उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ हँस दिया ।

इसके बाद दो दिन तक फिर सोहित तुलसी से नही मिल पाया । शनिवार आ पहुँचा था और आज सोहित तुलसी से मुलाक़ात जरूर करना चाहता था। उधर तुलसी भी सोच रही थी, “सर भी मेरी ही तरह हैं, मेरी ही तरह हमेशा हँसते ही रहते हैं। और कितने अच्छे से किसी बात को समझाते हैं।”

सोहित ने शनिवार का काम जल्दी से निपटाया और चल पड़ा प्रेम नगर की तरफ क्योंकि तुलसी के काम खत्म करने से पहले ही वहाँ पहुँचना आवश्यक था। उसे निराश नही होना पड़ा, तुलसी और चाची फील्ड में ही मिल गयीं। औपचारिकता के लिए उनकी रिपोर्ट देखी और सवाल जवाब किये। सोहित बोला,” आप लोग हमसे इतना डरते क्यों हो? हम लोग भी तो आप लोगों की ही तरह काम करते हैं । बस फर्क ये है कि हम तुम्हारे सर्वे किये हुए घरों को ही दोबारा विजिट करते हैं।”

चाची सामान्यतः कभी कोई उत्तर नहीं देती थी, तो तुलसी ने ही कहा, ” सर, सब लोग तो हमें आप लोगों का ही नाम लेकर डराते रहते हैं । हमें डर लगा रहता है गलती होगी तो पता नही आप लोग क्या करोगे । हमारी साथी बताती हैं कि बहुत डाँटते हो आप लोग।” “अरे हम लोग तो आप लोगों का ही काम सुधरवाने के लिये हैं, काम तो आप ही करते हो। और फिर जब काम सही किया है तो डरना कैसा । ” सोहित ने समझाते हुए कहा ।

इस बातचीत का तुलसी पर बहुत असर हुआ । और फिर से सोहित और तुलसी के अजन्मे प्रेम की जुदाई का समय आ पहुँचा । तुलसी के मन में सोहित के प्रति जो भय था निकलने लगा था अब और अब सोहित ‘कमीने’ से ‘सर’ हो गया था । तुलसी ने खुद ही कहा, ” अच्छे हैं सर।”

इधर सोहित ने अपनी रिपोर्ट मुख्यालय में भेजी और तुलसी के बारे में सोचता हुआ अपने घर की तरफ चल पड़ा । फोन नम्बर इस बार भी नही मांगा सोहित ने । अगले महीने का इन्तजार बार शुरू हो गया था सोहित के लिए और तुलसी अपनी नौकरी में लग गयी।
कितनी खूबसूरत होती हैं ये इन्तजार की घड़ियां भी । ………….
क्रमश :

” सन्दीप कुमार ”
१४/०७/२०१७

Language: Hindi
7 Comments · 616 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
खारे पानी ने भी प्यास मिटा दी है,मोहब्बत में मिला इतना गम ,
खारे पानी ने भी प्यास मिटा दी है,मोहब्बत में मिला इतना गम ,
goutam shaw
“परिंदे की अभिलाषा”
“परिंदे की अभिलाषा”
DrLakshman Jha Parimal
#justareminderekabodhbalak
#justareminderekabodhbalak
DR ARUN KUMAR SHASTRI
रात में कर देते हैं वे भी अंधेरा
रात में कर देते हैं वे भी अंधेरा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
■ स्वयं पर संयम लाभप्रद।
■ स्वयं पर संयम लाभप्रद।
*Author प्रणय प्रभात*
रद्दी के भाव बिक गयी मोहब्बत मेरी
रद्दी के भाव बिक गयी मोहब्बत मेरी
Abhishek prabal
2649.पूर्णिका
2649.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
*माँ जननी सदा सत्कार करूँ*
*माँ जननी सदा सत्कार करूँ*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कतरनों सा बिखरा हुआ, तन यहां
कतरनों सा बिखरा हुआ, तन यहां
Pramila sultan
स्वतंत्रता का अनजाना स्वाद
स्वतंत्रता का अनजाना स्वाद
Mamta Singh Devaa
रखे हों पास में लड्डू, न ललचाए मगर रसना।
रखे हों पास में लड्डू, न ललचाए मगर रसना।
डॉ.सीमा अग्रवाल
गरीबों की शिकायत लाजमी है। अभी भी दूर उनसे रोशनी है। ❤️ अपना अपना सिर्फ करना। बताओ यह भी कोई जिंदगी है। ❤️
गरीबों की शिकायत लाजमी है। अभी भी दूर उनसे रोशनी है। ❤️ अपना अपना सिर्फ करना। बताओ यह भी कोई जिंदगी है। ❤️
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
कुंडलिया छंद की विकास यात्रा
कुंडलिया छंद की विकास यात्रा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
छोड़ दो
छोड़ दो
Pratibha Pandey
भगवत गीता जयंती
भगवत गीता जयंती
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
नया सवेरा
नया सवेरा
नन्दलाल सुथार "राही"
"शहीद वीर नारायण सिंह"
Dr. Kishan tandon kranti
डरने कि क्या बात
डरने कि क्या बात
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
रोटी की ख़ातिर जीना जी
रोटी की ख़ातिर जीना जी
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
Wakt ke pahredar
Wakt ke pahredar
Sakshi Tripathi
हर शाखा से फूल तोड़ना ठीक नहीं है
हर शाखा से फूल तोड़ना ठीक नहीं है
कवि दीपक बवेजा
तुझसे कुछ नहीं चाहिये ए जिन्दगीं
तुझसे कुछ नहीं चाहिये ए जिन्दगीं
Jay Dewangan
दर्द को मायूस करना चाहता हूँ
दर्द को मायूस करना चाहता हूँ
Sanjay Narayan
ज़िन्दगी तुमको ढूंढ ही लेगी
ज़िन्दगी तुमको ढूंढ ही लेगी
Dr fauzia Naseem shad
कहना नहीं तुम यह बात कल
कहना नहीं तुम यह बात कल
gurudeenverma198
रिश्ते
रिश्ते
Ashwani Kumar Jaiswal
जब तक लहू बहे रग- रग में
जब तक लहू बहे रग- रग में
शायर देव मेहरानियां
चाहने वाले कम हो जाए तो चलेगा...।
चाहने वाले कम हो जाए तो चलेगा...।
Maier Rajesh Kumar Yadav
सुध जरा इनकी भी ले लो ?
सुध जरा इनकी भी ले लो ?
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
आज का श्रवण कुमार
आज का श्रवण कुमार
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Loading...