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15 Mar 2017 · 1 min read

अदब

किसी’ इस्कूल की बेजान सी’ मजलिस जैसे!!
अदब है शहरे ख़मोशां की परस्तिश जैसे!!

तमाम चेहरों से मुस्कान ऐसे ग़ायब है,
पढ़ा रहा हो छड़ीदार मुदर्रिस जैसे!!

न जाने कैसे काटते हैं रहबरी में गला,
कि कोई मेमना हो मुफ़्त का मुफ़लिस जैसे!!

@ कुमार ज़ाहिद,
10.2.17, 6.04

1 Like · 2 Comments · 518 Views
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