” ———————————————– अंखियन छूटा काजर ” !!
हंसी कैद घूँघट में देखो , खुशियां छलके बाहर !
हाथों में चुड़ले खनके हैं , पैरों बाजे झांझर !!
अभी बेड़ियां नहीं हैं छूटी , टूटे ना है बन्धन !
द्वार देहरी लाज है पल्लू , अंखियन छूटा काजर !!
घट पनघट हैं खेत खले हैं , चूल्हे चौके संग में !
दूध दही है माखन घी है , अगनां में हैं ढाँढर !!
खेतों की रखवाली है और, कभी डागले बैठे!
हाथों में पत्थर गोफन है , कभी उड़ाते पाखर !!
श्रम से है परहेज़ नहीं , कांधे जिम्मेदारी !
प्रभु की मेहर यहां बरसती , हम हैं निज के चाकर !!
हमने धन संतोष है पाया , बाकी सब धूसर है !!
थोड़े ही में खुश जानो हम , जितना पाया पाकर !!
आँगन शिक्षा चहक रही है , पीढ़ी अब बदलेगी !
अब विकास के द्वार खुले हैं , गीत खुशी के गाकर !!
बृज व्यास