Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Mar 2017 · 8 min read

वो एक रात 7

बटुकनाथ धूनी के पास पहुँच गए। वहाँ उपस्थित वे व्यक्ति बटुकनाथ को विस्मय और डर से देख रहे थे। लेकिन बटुकनाथ वहाँ जाकर शांति से बैठ गए।थोड़ी देर निस्तब्धता बनी रही।
“बेवकूफों कोई संस्कार है ही नहीं क्या?” आने वाले अतिथि का सत्कार नहीं किया जाता क्या तुम्हारे यहाँ!”
मैं यहाँ इतनी देर से बैठा हूँ किसी ने पानी तक की व्यवस्था नहीं की। भोजन तोे दूर की बात है।”
इतना कठोर लहजा सुनकर कहीं अघोरी और रुष्ट न हो जाए, एक व्यक्ति भागकर एक जग में पानी ले आया। इतने में एक व्यक्ति ने मंदिर के अंदर से कुछ फलों को लाकर एक स्वच्छ भगवे कपड़े में बटुकनाथ के सामने रख दिया। बटुकनाथ ने बिना कोई प्रश्न किए उन फलों को खाना शुरू कर दिया। काफी दिनों से पैदल ही यात्रा कर रहा था बटुकनाथ। एक जगह विश्राम किया था बस। उसके बाद उसकी यात्रा अनवरत जारी थी। बटुकनाथ ने भोजन समाप्त करने के बाद धूनी के चारों और बने चबूतरे पर पैर फैला दिए।
“बाबा चिलम पियोगे! ” एक व्यक्ति ने अदब से पूछा।
बटुकनाथ ने मना कर दिया।
“एक बात बताओगे!”
“जी महाराज।”
“इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा क्यूँ नहीं हुई?”
“चारों व्यक्तियों ने एक दूसरे को देखा। हाँ वे चार थे जो इस समय चबूतरे के नीचे बटुकनाथ के सामने बैठे थे।
“क्या हुआ बताओ! ”
“बाबा हम चारों वो सामने गाँव हैं न वहाँ के रहने वाले हैं।”
“तो? ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है।”
“बाबा हम यहाँ सुबह-शाम मंदिर की सफाई करने आते हैं और थोड़ी देर बैठकर रात होने से पहले चले जाते हैं।”
बटुकनाथ को झुंझलाहट हो रही थी। जो उसने पूछा था उसका जवाब तो वे दे ही नहीं रहे थे।
“तुम सब कान से बहरे हो क्या! ” बटुकनाथ गुर्राए; जो मैं पूछ रहा हूँ उसका जवाब क्यूँ नहीं दे रहे हो! ”
“महाराज हम वही बता रहे हैं।” चारो थरथराए।
फिर उनमें से बटुकनाथ को क्रोधित होते देखकर एक ने जवाब देना शुरू कर दिया।
“बाबा काफी वर्षों पहले ये मंदिर आबाद था। यहाँ हमारी कुल देवी धूमावती की आदमकद मूर्ति विराजमान थी।” एक ने बटुकनाथ को मंदिर के गर्भ गृह की ओर इशारा किया।
“धूमावती!” नाम सुनकर ही बटुकनाथ विस्मय से खडा़ हो गया।
“क्या वो सामने बापू टीला का जंगल है?” बटुकनाथ ने खड़े होकर खुशी से मंदिर के द्वार के सामने फैली विशाल जंगल राशि की ओर उँगली से इशारा करते हुए पूछा।
“हाँ बाबा वो जहरीला जंगल यही है।” एक ने जवाब दिया।
“जहरीला……. हाँ इस जंगल के विषय में कुछ ऐसा सुन चुका था बटुकनाथ। बटुकनाथ अपनी यात्रा के पहले पडा़व पर पहुँच चुका था। वह खुशी से भाव-विभोर हो रहा था।
“अब अपनी मंजिल से अधिक दूर नहीं हूँ मैं। श्रांतक मणी…… पहुँच चुका हूँ मैं तुम्हारे पास। जल्दी ही तुम हमारी मुट्ठी में होगी। मुझे अघोरानंद मत समझना, बटुकनाथ हूँ मैं…… तुझे हासिल कर लूँगा मैं…… और ये संसार देखता रह जाएगा…… हहहहहहहहहहहाआआआआआआआ….. ”
पागलों की तरह हँसते देख उनका शक यकीन में बदल चुका था कि अघोरी लोग सनकी और पागलों वाली हरकतें करने वाले होते हैं….. उनसे दूर रहना ही बेहतर होता है। शाम ढलने के कगार पर थी….. उन्होंने वहाँ से खिसकना ही उचित समझा। लेकिन……….
“कहाँ जा रहे हो मूर्खों, अभी मेरे सवाल समाप्त नहीं हुए हैं।”
चारों के पैर जम गए।
“महाराज हमें जाने दें…. रात होने वाली है।” चारों गिड़गिडा़ए।
“रात होने वाली है तो क्या हुआ….. बटुकनाथ के होते तुम निर्भय रहो।” इतना कहकर बटुकनाथ उन्हें लेकर चबूतरे के पास आ गए। अब सूरज डूब चूका था। केवल शाम का धुंधलका शेष था। रात होती जा रही थी और चारों किसी अनजान भय से काँप रहे थे।
“तो फिर क्या हुआ? धूमावती की मूर्ति कहाँ गई!”
चारों के पास बटुकनाथ के सवालों के जवाब देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था…………… ।
*************************************************
चर्च की घंटी ने 12 बजने के संकेत दे दिए थे। आज फादर क्रिस्टन को काफी समय हो गया था चर्च के अंदर ही। फादर क्रिस्टन केरल के रहने वाले थे। वे कई वर्षों से इस चर्च की देखभाल करते थे। उत्तमनगर के बाजारवालां इलाके में रहते थे फादर। उनके साथ चर्च की सेवा में रहने वाले मल्लूदीन व सिस्टर मैरी शाम होते ही चर्च से जा चुके थे। कुछ काम शेष रह गया था, जिसके लिए फादर रुक गए थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि इतना वक्त हो जाएगा। उन्होंने एक पल सोचा कि चर्च में ही रुका जाए लेकिन कल सुबह उन्होंने किसी से मिलने का वादा किया था और महत्वपूर्ण ये भी था कि चर्च में कुछ कन्सट्रकश्न का भी कार्य करवाना था जिसके लिए कुछ पैसों की आवश्यकता थी। अत: उन्होंने घर जाने का निश्चय किया और वे चर्च से निकल पडे़।
रात काफी गहरी हो चुकी थी। रात बिलकुल अँधेरी थी। चर्च से बाजारवालां की दूरी कम से कम तीन किमी तो थी ही। फादर पैदल आते जाते थे। लेकिन ये तीन किमी की दूरी आज उन्हें काफी लग रही थी। जंगली जानवरों की आवाजें स्पष्ट सुनाई दे रही थी। कुत्तों के भौंकने की आवाजें भी आ रही थी। फादर ने यूँ ही पीछे मुड़कर देख लिया। उनकी आँखें फैल गई। उन्हें लगा की कब्रिस्तान के पास कोई खडा़ था। इस समय कौन होगा? और क्या कर रहा है वह! तभी फादर के मन में कोई विचार आया और वे सिहर उठे। सही भी था। इस समय तो कोई मनुष्य इधर आने के बारे में सोच भी नहीं सकता था। फादर की चाल में तेजी आ गई। स्याह सड़क अँधेरे में और भी स्याह लग रही थी। फादर ने दूर नजर फैलाई। मंजिल अभी दूर थी। शहर की बहुत ही मद्धिम रोशनी नजर आ रही थी। उस साये का ख्याल आते ही फादर के पैरों में मानों पंख लग गए। तभी……… उन्होंने किसी लड़की की इतनी दर्द भरी चीख सुनी की वे थरथरा गए।
“ब…. चा………. ओ……. ब.. चा…. ओ मुझे इन शैतानों से।”
कौन होगी ये…… लगता है कोई औरत पर अत्याचार कर रहा है। फादर ने आवाज की दिशा में सोचा। आवाज बाएँ तरफ से आई थी। उधर कच्चा रास्ता था। और थोड़ी दूर एक खेत था, जिसमें गेहूँ की लगभग तैयार फसल लहलहा रही थी।
“ब….. चा….. ओ…….. ”
आवाजें फिर आई। फादर ने कुछ देर सोचा और आवाज की दिशा में चल दिए। कच्चे रास्ते की मिट्टी थोड़ी गीली थी। मिट्टी गीली क्यूँ है! क्या बारिश हुई थी क्या! लेकिन कब! मेरे विचार से बारिश तो हुई ही नहीं। पता नहीं क्या सोचा फादर ने और नीचे जमीन पर उँगली लगाई……. और जब उँगली को सूँघा तो फादर की आँखें फट गई।
“ख्……. ख…. खू……….. न! इतना सारा! कि मिट्टी गीली हो गई।
“ब……. चा……. ओ।” आवाजें फिर आई।
फादर सोच में मग्न थे। इतना खून किसका हो सकता है! तभी उन्हें कुछ ऐसी आवाजें आई जैसे कोई कुछ हब्शियों की तरह खा रहा हो। वे आगे की ओर चले। उन्हें खेत की मेड़ के पास कुछ साये दिखाई दिये।खाने की आवाजें और हल्की हल्की आ….. आ……. आ……. कराहने की आवाजें आ रही थी।
” ओ गोड क्या मैटर हो सकता है ये! फादर बड़बडा़ए। और फादर जब नजदीक पहुँचे तो वीभत्सता की चरम सीमा से उनकी आँखें दो चार हुई। वे दो साये थे जो एक अर्धजीवित लड़की के पेट को नोच नोचकर खा रहे थे। बडी़ भयंकर आवाजें निकाल रहे थे वे शैतान। लड़की खून से नहाई हुई थी। फादर की आहट सुनकर वे शैतान पलटे। ओह……. खून से सना उनका भयानक चेहरा और तेज चमकती उनकी आँखें…….. फादर की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। उन भयंकर आकृतियों का शरीर बुरी तरह से लहरा रहा था। शरीर ऐसे कैसे लहरा सकता है। फादर कुछ सोचते….. वे साये फादर की ओर लपके। फादर ने पवित्र क्रोस को आगे कर दिया लेकिन उनके हाथ काँप रहे थे। वे भयंकर आकृतियाँ पीछे को हटती हुई गला फाड़कर चिल्लाई। ओह कितने बडे़-बड़े दाँत थे इन दरिंदों के। फादर ने क्रोस आगे किया और पीछे हटने लगे। अब फादर ने भागने में ही गनीमत समझी। क्योंकि लड़की को तो वे दरिंदे निवाला बना चुके थे। उनकी भयंकर आवाजें फादर की हड्डियों को भी कँपा रही थी। आगे कम पीछे ज्यादा ध्यान रखते फादर सड़क के पास पहुँच गए। अपने अजीबोगरीब शरीर को हवा में लहराती हुई वे भयंकर आकृतियाँ जमीन से ऊपर तैर रही थीं । और अजीब सी आवाजें करती हुई फादर के पीछे-पीछे थी। फादर ने बाइबिल की सभी आयतें पढ़नी शुरू कर दी थी। आयतें पढ़कर जैसे ही वे उनकी तरफ फूँक मारते वे भयानक रूप से चिल्लाती हुई पीछे को हट जाती थी। लेकिन फादर का निरंतर पीछा कर रहीं थी। फादर ने सड़क पर पहुँच कर बहुत तेजी से शहर की ओर दोड़ लगा दी। लेकिन वे भयंकर आकृतियाँ सिर पर ही खड़ी प्रतीत होती थी। फादर हाँफने लगे थे। दुनिया के भूत उतारने वाले फादर के पीछे आज जिंदा भूत पडे़ थे। फादर क्रिस्टन को अपनी मौत नजर आने लगी थी। यूँ पीछे देखते-देखते कब तक भाग सकते थे आखिर वे। फादर गिर पडे़ । और….. वे भयंकर आकृतियाँ उनके सिर पर चढ़ गई। जैसे ही वे उनके नजदीक आती फादर क्रोस आगे कर देते वे चिंघाड़कर पीछे को हट जाती। फादर की साँसें अटक रही थी। उनकी धड़कनें धाड़ धाड़ बज रही थी। फादर को अपनी मौत नजर आ रही थी। वे आकृतियाँ साँप की तरह अपने शरीर को हवा में लहरहा रही थी। तभी………. उन्हें अपने पीछे कुछ आवाज सुनाई दी।
“ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय फट् स्वाहा” इतना कहकर उस साधु ने अपने कमंडल से अपनी हथेली में जल को निकालकर अभिमंत्रित किया और उन भयंकर आकृतियों की ओर फेंक दिया।
भयंकर आकृतियाँ बुरी तरह से चिंघाडी़ और छटपटाकर पीछे हट गई।
“फादर उठो……… और जल्दी से मेरे पीछे भागो।” उस साधु ने फादर को कहा और फादर उठे और जल्दी सेउठकर साधु के पीछे-पीछे भागे। भयंकर आकृतियों ने फिर यू-टर्न लिया और उन दोनों के पीछे-पीछे हवा में लहराती हुई तेजी से भागी।
साधु और फादर भागते हुए सड़क के किनारे से कुछ दूर एक कच्चे रस्ते पर चले गए। साधु ने देखा कि फादर पीछे रह गए थे और आकृतियाँ फिर नजदीक लग रही थीं।
“फादर अगर जिंदा रहना है तो जितनी तेज भाग सकते हो भागो।” साधु की बात सुनकर फादर ने अपनी बची हुई साँसों को इकट्ठा किया और साधु के पीछे भागते हुए एक पुराने मंदिर में जा घुसे। साधु ने मंदिर में घुसते ही घंटे को बजा दिया। वे भयंकर आकृतियाँ मंदिर के सामने आकर रुक गई ।
फादर ने देखा। ……… आकृतियाँ वापस लौट गईं। फादर ने इत्मीनान की साँस ली। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वे एक भयंकर मौत से बच गए थे। साधु फादर को मंदिर में अंदर ले आए। फादर इतने थके थे कि वे मंदिर के प्रांगण में ही निढाल होकर गिर पडे़……………. ।
सोनू हंस

Language: Hindi
602 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
परछाइयों के शहर में
परछाइयों के शहर में
Surinder blackpen
गांव की याद
गांव की याद
Punam Pande
श्री राम का अन्तर्द्वन्द
श्री राम का अन्तर्द्वन्द
Paras Nath Jha
*यार के पैर  जहाँ पर वहाँ  जन्नत है*
*यार के पैर जहाँ पर वहाँ जन्नत है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
#drarunkumarshastri♥️❤️
#drarunkumarshastri♥️❤️
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"चिढ़ अगर भीगने से है तो
*Author प्रणय प्रभात*
चाहता है जो
चाहता है जो
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
हिन्दी दोहा बिषय- कलश
हिन्दी दोहा बिषय- कलश
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
सुखी होने में,
सुखी होने में,
Sangeeta Beniwal
मेघ
मेघ
Rakesh Rastogi
💐अज्ञात के प्रति-108💐
💐अज्ञात के प्रति-108💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
उलझ नहीं पाते
उलझ नहीं पाते
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
* राह चुनने का समय *
* राह चुनने का समय *
surenderpal vaidya
(15)
(15) " वित्तं शरणं " भज ले भैया !
Kishore Nigam
सुनो पहाड़ की....!!! (भाग - १०)
सुनो पहाड़ की....!!! (भाग - १०)
Kanchan Khanna
प्रेम मे धोखा।
प्रेम मे धोखा।
Acharya Rama Nand Mandal
तुमसे बेहद प्यार करता हूँ
तुमसे बेहद प्यार करता हूँ
हिमांशु Kulshrestha
मेरी गोद में सो जाओ
मेरी गोद में सो जाओ
Buddha Prakash
रात के सितारे
रात के सितारे
Neeraj Agarwal
आरजू
आरजू
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
बदलते रिश्ते
बदलते रिश्ते
Sanjay ' शून्य'
हाँ, ये आँखें अब तो सपनों में भी, सपनों से तौबा करती हैं।
हाँ, ये आँखें अब तो सपनों में भी, सपनों से तौबा करती हैं।
Manisha Manjari
संवेदनहीन प्राणियों के लिए अपनी सफाई में कुछ कहने को होता है
संवेदनहीन प्राणियों के लिए अपनी सफाई में कुछ कहने को होता है
Shweta Soni
ना आसमान सरकेगा ना जमीन खिसकेगी।
ना आसमान सरकेगा ना जमीन खिसकेगी।
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
एक खूबसूरत पिंजरे जैसा था ,
एक खूबसूरत पिंजरे जैसा था ,
लक्ष्मी सिंह
जो कुछ भी है आज है,
जो कुछ भी है आज है,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
2475.पूर्णिका
2475.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
*मूलत: आध्यात्मिक व्यक्तित्व श्री जितेंद्र कमल आनंद जी*
*मूलत: आध्यात्मिक व्यक्तित्व श्री जितेंद्र कमल आनंद जी*
Ravi Prakash
"फ़िर से आज तुम्हारी याद आई"
Lohit Tamta
आजादी का
आजादी का "अमृत महोत्सव"
राकेश चौरसिया
Loading...