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19 Jul 2017 · 1 min read

विधा कविता

विरहणी
ऐ पवन ! जरा रुकजा मेरे संगसंग चल।
राहें भूली मैं प्रियतम राह दिखाते चल।
राह पथिक बनके जरा धीरे –धीर चल।
मै आई दूर देश से स्वपन्न सुनहरे तू चल।
वो देखो!मेरी सखी वहाँ तू देखते चल
आधी बतियाँ भूली तू मेघ संंग चल।

मेघघनछाये ऐ मेघ !जरा रुकजा अब।
पथिकबनके आगे भूली राहें दिखा अब।
कहाँ है प्रियका देश कहाँ जाना अब।
पवनने छलके भेजा मेरे संग अब।
आधी राहपे छोड़ चला अपने मार्ग अब।
हे विहरणी पीछे जा लौट आएतरस अब।
दोषी नसमझना प्रियने वीरगति पाई अब।
सज्जो चतुर्वेदी स्वरचित

Language: Hindi
737 Views
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