Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Jun 2016 · 3 min read

लैपटॉप

लघु कथा
लैप टाॅप
सोने की बहुत कोशिश कर रही थी पर नींद आ ही नहीं आ रही थी मालूम नहीं किस कोने में छिप कर बैठ गयी है मेरी नींद। नमन मेरे पति काफी देर पहले ही सो गये थे। समझ नहीं आ रहा था क्या करूं पत्रिकाओं को भी उलट पलट कर देख लिया था। आज कल पत्रिकायें भी कमाने का धन्धा बन गयीं हैं। पढ़ने की चीजें कम फालतू के विज्ञापन ज्यादा होते हैं।
लैप टाॅप उठाया देखूं फेसबुक पर या फिर स्काई पी पर ही कोई मिल जाये गप्पें ही लगाने को मिल जायेंगी। मैंने जैसे ही स्काई पी लगाया तो देखा सिद्धार्थ मेरा बेटा आॅन लाइन ही था।
मैंने उसे अपने स्काई पी पर कनैक्ट कर ही लिया मुझे देखते ही बोला ‘‘हैलो मम्मी क्या हो रहा है सुना है देहरादून में बहुत ठंड हो रही है। कैसे चल रहा है वहाँ? पापा कैसे हैं वह तो सो गये होगे आप नहीं सोयीं अभी तक रात के ग्यारह बज रहे हैं।’’
हाँ बेटा आजकल नींद ही नहीं आती है। ऐसे ही करवट बदलती रहती हूं सुबह के समय आती भी है तब तक उठने का टाइम हो जाता है। और तू बता वहाँ कनाडा में मौसम कैसा है? वहाँ भी तो ठंड बहुत पड़ रही है। शून्य में चला जाता होगा वहाँ का तापमान ’’
‘‘हाँ मम्मी माइनस थर्टी चल रहा है आजकल तो पर, यहाँ कोई परेशानी नहीं होती हर जगह तो हीटर लगे होते हैं यहाँ के घर, सारे आॅफिस सेन्ट्रली हीटिंग सिस्टम पर काम करते है। यहाँ तक कि बच्चों के स्कूल भी। मम्मी आप की आँखें क्यों सूज रहीं हैं रोयी हैं क्या आप?’’
यह कह कर उसने रीना और बेटी चिंकी को भी बुला लिया था स्काई पी पर……..।
‘‘गुड मोर्निंग मम्मी कैसी है? आप बहुत कमजोर लग रहीं हैं क्या हुआ तबियत तो ठीक है?’’ यह बहू रीना की आवाज थी
मैंने बात को घुमाना चाहा ‘‘मैं ठीक हूं तुम कैसी हो? चिंकी तो अब स्कूल जाने लगी होगी?’’
‘‘ हाँ मम्मी अब वह स्कूल जाने लगी है’’
मैंने ही पूछा ‘‘ यह बताओ तुम लोग कब आ रहे हो इंडिया तुमसे मिलने का अब बहुत मन करता है’’
मुझे लग रहा था कि मेरा पूरा परिवार ही मेरे बिस्तर पर ही आ कर बैठ गया है।
बहू बेटा और मेरी लाडली पोती। आज कल टैक्नोलोजी कितनी प्रगति कर गयी है सब हुछ सैकिन्ड के अन्दर हाथ में ही मिल जाता है।
‘‘माँ हम लोग मन बना तो रहे हैं इन्डिया आने का पर कब तक पहुच पायेंगे यह निश्चित नहीं है।’’
‘‘ फिर भी कितना ?’’
‘‘शायद छः महीने तो लग ही जायेंगे’’
मैंने गहरी साँस ली और बोला‘‘छः महीने ………अभी तो बहुत लम्बा टाइम है फिर तो’’
‘‘क्यों मम्मी क्या हुआ? मैं आरहा हूं ना आप लोगों के पास। फिर आप क्यों चिन्ता कर रही हैं’’
‘‘ अच्छा बेटा अब बहुत जोरों से नींद आने लगी है अब सोती हूं’’ और मैंने इन्टरनेट कनैक्शन काट दिया था आँखों से आँसू बहने लगे थे मैंने लैप टाॅप को अपने सीने से लगा लिया था। लग रहा था जैसे मैंने पूरे परिवार को ही सीने से लगा लिया है।
बेटा तब तक तो बहुत देर हो जायेगी कैन्सर अपनी आखिरी स्टेज पर पहुंच चुका है
मन ही मन बुदबुदा रही थी मैं, लग रहा था मैंने अपना दुख अपने बेटे तक पहुचा दिया हैं
आभा

Language: Hindi
4 Likes · 3 Comments · 547 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
#हाइकू ( #लोकमैथिली )
#हाइकू ( #लोकमैथिली )
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
विपक्ष जो बांटे
विपक्ष जो बांटे
*Author प्रणय प्रभात*
मोर
मोर
Manu Vashistha
ठंड
ठंड
Ranjeet kumar patre
चन्द्र की सतह पर उतरा चन्द्रयान
चन्द्र की सतह पर उतरा चन्द्रयान
नूरफातिमा खातून नूरी
राम काज में निरत निरंतर
राम काज में निरत निरंतर
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
विश्व जनसंख्या दिवस
विश्व जनसंख्या दिवस
Bodhisatva kastooriya
मां रिश्तों में सबसे जुदा सी होती है।
मां रिश्तों में सबसे जुदा सी होती है।
Taj Mohammad
अपने होने
अपने होने
Dr fauzia Naseem shad
सीमवा पे डटल हवे, हमरे भैय्या फ़ौजी
सीमवा पे डटल हवे, हमरे भैय्या फ़ौजी
Er.Navaneet R Shandily
रमेशराज की पत्नी विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की पत्नी विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
चाँद
चाँद
ओंकार मिश्र
*सवाल*
*सवाल*
Naushaba Suriya
2524.पूर्णिका
2524.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
बालचंद झां (हल्के दाऊ)
बालचंद झां (हल्के दाऊ)
Ms.Ankit Halke jha
आखिर कब तक?
आखिर कब तक?
Pratibha Pandey
तेरे संग मैंने
तेरे संग मैंने
लक्ष्मी सिंह
सादगी तो हमारी जरा……देखिए
सादगी तो हमारी जरा……देखिए
shabina. Naaz
दोयम दर्जे के लोग
दोयम दर्जे के लोग
Sanjay ' शून्य'
शाहजहां के ताजमहल के मजदूर।
शाहजहां के ताजमहल के मजदूर।
Rj Anand Prajapati
बाल कविताः गणेश जी
बाल कविताः गणेश जी
Ravi Prakash
औरतें नदी की तरह होतीं हैं। दो किनारों के बीच बहतीं हुईं। कि
औरतें नदी की तरह होतीं हैं। दो किनारों के बीच बहतीं हुईं। कि
पूर्वार्थ
ऐ सुनो
ऐ सुनो
Anand Kumar
मंजर जो भी देखा था कभी सपनों में हमने
मंजर जो भी देखा था कभी सपनों में हमने
कवि दीपक बवेजा
तूफानों से लड़ना सीखो
तूफानों से लड़ना सीखो
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गाय
गाय
Vedha Singh
पेड़
पेड़
Kanchan Khanna
"जो होता वही देता"
Dr. Kishan tandon kranti
कर्मों के परिणाम से,
कर्मों के परिणाम से,
sushil sarna
हसरतें पाल लो, चाहे जितनी, कोई बंदिश थोड़े है,
हसरतें पाल लो, चाहे जितनी, कोई बंदिश थोड़े है,
Mahender Singh
Loading...